समाजवाद : पूँजीवाद | Samajvad Punjivad
श्रेणी : अर्थशास्त्र / Economics
लेखक :
Book Language
हिंदी | Hindi
पुस्तक का साइज :
4 MB
कुल पष्ठ :
205
श्रेणी :
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लेखक के बारे में अधिक जानकारी :
No Information available about श्री शोभा लाल गुप्त - Shri Shobha Lal Gupt
पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश
(Click to expand)विभाजन कैसे करे? ११
साम्यवाद की उपयोगिता का पा लग जायगा ! यदि सडकों की जगह
কষা रेतीला रास्ता हो रहने दिया जाय तो हमारी तांगा, वग्प्री आदि
सवारियाँ और बोम्शा टोने वाली बेलगाडियों हम दडी क्ष्ठकर प्रतीत दोगी।
तव दमन मालूम पो जायगा कि साग्यवाद् वास्तव मे एक सुविष।जनक
व्यवस्था है | साम्यवादी व्यवस्था के अनुसार खर्च वी हुई सम्पत्ति से
सभी लेगा कौ ममान मुस मिलता है ।
पुल वी तरह जिस च॑ज वा व्यदह्यर ६र एक आदमी करता ই, হস
राष्ट्रीय मसत्ति में से उसी की व्यवस्था कर सकते हैं, या जिससे हर एक
को लाभ पहुँचे वही चीज सामाजिक सम्पत्ति बनाई जा सकती है । पानी
को तरह हम शरात्र का ऐसा प्रत्रन्थ नहीं कर सकते कि उसे राराबी जितनी
चाह उतनी पा सके। ऐसी शरीर और मम्निब्क वो बिगाड देने वाली
ओर बुराइयों को जन्म देने वाली चोज के लिए तो लाग कर न दे कर
जेल जाना पसन्द करेंगे | इसलिए, जिस चीज वो सब काम में नहीं लेते
या जिसकों सब पसन्द नहीं बरते उसे समाज की सर्म्पात्त भन सेतो
भगे ष्टी उदये |
জীযা ब्राग, तालाध्रो, चेल के मैदानो, पुस्तकालय, चितरशालाश्रौ,
अन्वेषणालयों, प्रयोगशालाओ और अजायच्रघरो के लिए कर दे सकते हैं;
क्योकि वे इन्हे उपयोगी और सभ्यता के लिए आवश्यक समझते हैं ।
चीजो वा इतना विभाजन बुछ तो कौटुग्गिक साम्पवाद द्वारा और
बुछ सड़कों, पुलों ग्रदि विषयक्र वरूदाताओं के आधुनिक,साम्यवाद
হায় কিতা जा सहता है; किन्तु अविर्तश बेंटशरा हम झुफ्ये के रूप में
ही करना पड़ेगा । क्योंकि रुपये से हम जो चाहे खरीद सकते हैँ, दूसरों
को नदीं सोचना पड़ता कि हमने क्या चाहिए।
दुनिया में रुपया एक अत्यन्त सुविधाजनक वस्तु है। उसके बिना
हमारा काम नदी चल सम्ना। ২ हैं कि झुपग्रा सत्र बुराइयों की जड़
है;- किन्तु यह उसरा अपराध नहीं है कि कुछ लोग उसे দুল के
बजूसीवश अपनी आान्माओं से भी अधिक प्यार करते हैं ।
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