दसवेआलियं तह उत्तरज्झयणाणि | Dasvealiyan Tah Uttarajjhayanani
श्रेणी : साहित्य / Literature
लेखक :
Book Language
हिंदी | Hindi
पुस्तक का साइज :
12 MB
कुल पष्ठ :
920
श्रेणी :
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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश
(Click to expand)सम्पादकीय
सम्पादन का कार्यं सरल , नहीं है--यह उन्हें सुविदित है, जिन्होंने इस
दिशा मे कोर प्रयत्न किया है । दो-ढाई हजार वर्ष पुराने ग्रन्थों के सम्पादन का
कार्य और भी जटिल है, जिनकी भाषा और भाव-घारा आज की भाषा और
भाव-धारा से बहुत व्यवधान पा चुकी है। इतिहास की यह अपवाद-शून्य गति
है कि जो विचार या आचार जिस आकार मे भार्य होता है, वह उसी आकार
में स्थिर नहीं रहता । या तो वह बड़ा हो जाता है या छोटा । यह ह्वास ओर
विक्रास की कहानी ही परिवर्तेत की कहानी है। और कोई भी आकार ऐसा
नहीं है, जो कृत है और परिवर्तेनशील नहीं है। परिवर्ततशील घटनाओं, तथ्यों,
विचारों ओर आचारो के प्रति अपरिवरतेनशीलता का आग्रह मनुष्य को असत्य
को ओर ले जाता है। सत्य का केन्न्द्र-बिन्दु यह है कि जो कृत है, वह सब
परिवतंनशीर है! कत या ज्ञाइवत्त भी ऐसा क्या है, जहाँ परिवतंन का स्पर्श
नहो इस विश्व में जो है, वह वही है जिसकी सत्ता लाश्वत ओर परिवतंन की
धारा से सवया विभक्तं नहीं है ।
शब्द की परिधि में बंधने वाला कोई भी सत्य क्या ऐसा हो सकता है, जो
तीनों कालों में समान रूप से प्रकाशित रह सके ? शब्द फे अथं का उत्कषं या
अपकपं होता है--माषा-शास्वर के इस नियम को जानने वाला यह आग्रह नहीं
रख सकता कि दो हजार वषं पुराने शब्द का आज वही अर्थ सही है, -जो आज
प्रचलित है। पाषण्ड शव्द काः जो अर्थं आगम-ग्रन्थों ओर अशोक के शिला-
लेखों में है, वह आज के श्रमण-साहित्य में नहीं है। आज उसका अपकर्प हो
चुका है। आगम-साहित्य के सकड़ों शब्दों की यही कहानी है कि वे आज
अपने मौलिक अर्थ का प्रकाश नहीं दे रहे,हैं। इस स्थिति में हर चिन्तनशील
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