हमारी राजनैतिक समस्याए | Humari Rajnaitik Samsaya
श्रेणी : राजनीति / Politics
लेखक :
Book Language
हिंदी | Hindi
पुस्तक का साइज :
14 MB
कुल पष्ठ :
292
श्रेणी :
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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश
(Click to expand)विषय-प्रवेश
৯ ध
इस चरम मांग से एक अच्छा परिणास भी निकला | एक ओर तो यह प्रगर्ट
हो गया कि एक अल्प-संख्यक समुदाय की कट्टरता उसे क्रिस सीमा तक ले जा
सकती है, दूसंरी ओर यह भी स्पष्ट होगया कि मुसलमानों के विरोध के पीछे एक
तीखापन ओर तीवता भी है, ओर उसके कारणों का विश्लेषण कर लेने, और
जां तक दो सके उनकी उन्वित मांगो को स्वकृत कर लेने शओरौर अन्य शिकायतों
के सम्बंध में उचित वैधानिक आश्वासन देने की आवश्यकता है ।
प्रजातंत्र में तो पारंस्पेस्कि सहानुभूति और एक-दूसरे के दृष्टिकोण को सम-
भने की क्षमता का होना बड़ा आवश्यक है | हम पर, जो इस देश में प्रजातंत्र
की स्थापना देखने के-लिए उत्सुक है, यह बाध्यता है कि हस मुसलमानों की मांग
से खीक उठने के बदले उसके मनोविज्ञान की गहराई में जायं। पाकिस्तान पके
फोड़े की दरह एक ग़लत ओर संघातक चीज़ हो सकती है, पर हमारी राजनीति
के अस्वास्थ्य में ही तो उसका जन्म हुआ है न! पाकिस्तान के सम्बन्ध में क्यों
मुसलमानों का इतना अधिक आग्रह है, ओर क्यों यह आग्रह प्रबलतर होता जा
रहा है ? कौनसी शक्तियां हैं जो इस आग्रह के पीछे काम कर रही हैं, और
उसे प्रेरणा और प्रोत्साहन पहुंचा रही हैं ? उन शक्तियों का जान लेना, यदि
हम भारत की एकता के आधार पर एक प्रजातन्त्र की स्थापना करना चाहते हैं,
नितान्त आवश्यक है | यह जानने के लिए हमें इतिहास की गहराई में जाना
पड़ेगा । हिन्दू और मुसलमान समाज क्या हमेशा एक दूसरे से इसी तरह खिंचे
रहे या कभी उनमें मेलजोल भी होगया था। यदि मेलजोल हुआ था तो बह
किस सीमा तक पहुंचा था, ओर वह क्यों अपने को क्लायम न रख सका !
कौन से ऐसे कारण थे जिन्होंने दो महान् संस्कृतियों को एक शानदार समन्वय से
पथभ्रष्ट कर दिया १ उसमें विदेशी शासन को कूय्नीतिन्नता का प्रभाव कितना था
आर कितना था हमारी अपनी सामाजिक कमियों का उत्तरदायित्व ! मुसलमानों
द्वारा पाकिस्तान की सांग ने इन सब प्रश्नों का वैज्ञानिक उत्तर दूंढ़ निकालने पर
हमें विवश कर दिया है | ~
कुछ लोग मुसलमानों के इस रवैये से खीक कर उनते अपना राजनैतिक
सहयोग ही खींच लेना चाहते हैं। वह राष्ट्रीय आन्दोलन को ही इतना
सशक्त बनाना चाहते है कि मुसलमानों के सहयोग के बिना, अथवा जरूरी
हुआ तो असहयोग के साथ भी, अंग्रेजों के अनिच्छुक हाथों से शासन-सत्ता
छीन ली जाय । यह विश्वास उस मनोझइत्ति से भो, जिसने पाकिस्तान को जन्म
दिया, अधिक भयडुर है । पाकिस्तान यदि निशशा की पुकार है, तो
~
धारणा एक बोखलाहट की अभिव्यक्ति है। हमारी राष्ट्रीयता के विक्स
411 যী ॥
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