फल , उनके गुण तथा उपयोग | Fal Unke Gun Tatha Upayog

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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जीवन-शक्ति ३ बहुत आवश्यक है कि समाज मे इख पकार के मुष्य बहुत कमर मिलेंगे जिनको अपने भोजन का यथोचित ज्ञान हो । समाज की इस अवस्था का कास्ण वया है ? यह प्रश्न हमारे सामने है और बहुत आवश्यक है । प्राकृति ने संसार के समस्त प्राणियाँ को इस प्रकार का ज्ञान प्रदान किया है जिससे किसी भी प्राणी को अपने भोजन का ज्ञान प्राप्त करने के लिए किसी से शिक्षा प्राप्त करने की श्रावश्यकता नही द्ोती। यह জন হীন पर भी महुष्य को यह जानने की आवश्यकता है कि हमारा वास्तविक भोजन क्या है | सभी लेग यह पढ़कर विस्मित होंगे कि जिस ज्ञान की आवश्यकता खंखार में किसी भी प्राणी को नहीं हे, उसकी आवश्यकता मनुष्य-जाति को क्यों है ? उनका ऐसा सोचना आश्चर्यजनक नहीं है । इसलिए कि जो ऐसा सेचंगे, वे तो यही जानते हैं कि मनुष्य तो समस्त प्राणियों की अपेक्ता ज्ञान सम्पन्न है, फिर उसको किसी बात के जानने की आवश्यकता क्या है और विशेषकर, उन बातों के लिए, जिनको सभी प्राणी, स्वमावतः जानते और जिनके सस्बन्ध की जानकारी रखते है । यह संव ठीक होते हप भी बात कुछ और है। जिन बातें का ज्ञान प्रकृति ने स्वसावतः समस्त प्राणियों को प्रदान किया है, उनसे भजुष्य जाति किसी प्रकार वंचित नहीं रखी गई किन्तु मलुष्य-जाति ने स्वयं अपने आपको उन जानकारियों से वंचित कर रखा है ! यह छुनकर किली को आश्चर्य न करना चाहिए, मलुष्य वंचित हुआ है, सभ्यता के प्रमाद मे ! अ्रप्राकृतिक उन्माद्‌ में ! यह भ्रमाद्‌ ओर उन्माद क्या है, यहाँ पर इसके सम्बन्ध मे कुद लिखना श्रावकशयक है । मानष समाज की सभ्यता का विकास, प्रकृति के विरुद्ध




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