अतीत के चित्र | Ateet Ke Chitra

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Ateet Ke Chitra by श्री दुलारेलाल भार्गव - Shree Dularelal Bhargav

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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१६ अतीत के चित्र चुकी थी, परंतु उस राख के ढेर से कभी-कभी थोड़ी वचिनगारियां निकल पडती थीं। आज उन पर भी पानी पड़ गया। वह कमरे में जाकर अपने पतल्ँग पर लेट गूई। हृदय का आवेग अपनी राह बह निकला। इस स्थिति में माता ने सरोज को देख लिया । बोलीं--“बेटी, इस प्रकार रोकर हृदय क्यों दुखाती है? भाग्य उस क्रिस्टान के चमकने थे ।” सरोज हँस पड़ी-“किसी की प्रसन्नता पर हमें रोने का क्या. अधिकार मा) ये आँसू तो हष के हैं ॥” रमेश के विवाह का दिन आ पहुँचा । सरोज, शांता और उनके माता-पिता भी द्ावत खाने पहुँच की गए । अंतरजातीय विवाह था, पति-पत्नी दोनो तेयार होकर कोट गए। सरोज इत्यादि जब हीरालालजी के घर पहुचे, उस समय वर-वधू के स्वागत की तेयारी हो रही थी | वह घड़ी सी आ पहुंची । द्वार पर एक मोटर आ लगी; ओर भीतर से रमेश एक युवती का हाथ पकड़े बाहर निकल आए । लड़की देखने में साधारण और साँवले रंग की थी। सबने वर-बधू ओर उनके माता-पिता को बधाई दी | सरोज की मा ने भी दिल्ल के फफोले फोड़ने का उचित अवसर देखकर कद्ा--“बहनजी, बहू तो तुम्हारी बड़ी अच्छी है। भगवान्‌ सबको ऐसा सुख दे।” रमेश की सा इस व्यंग्य को पी गई । सूख्री हँसी हँसकर केवज्ञ इतना ही उत्तर दिया--“जो बिंव गया; सो मोतो है ।




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