रंग और रेखाएं | Rang Aur Rekhaye

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Rang Aur Rekhaye by से. रा. यात्री - Se. Ra. Yatri

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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है चौंक कर दरवाजे की तरफ देखा। रतन था! रतन को इस बात ने जले पर नमक का काम किया 1 “मदनिया, सुनता नही है ।” रामा काका चिल्ताया। इस थार बावाज इृतती मारी और तेज थी कि वच्चे सहम गये। वे जपतः नाचयान मूत कर एक तरफ दीवार केः पास खड़े हो गये । मदन ने सुनकर भी हही सुदा | वह गौर उसका दोस्त कलेक्शन क तार আঁ रहे चुपवाप ) “मदन, वंहरा है क्या ?” डोकरा जितनी ऊंदी आवाज कर सकता था, कर चुका । मदन ने श्िफ एक बार अपने वाप की तरफ देखा और काम से जुट गया। आज शुकबार था। मदन के दिमाग मे चित्रहार और रामायण धूम रहे थे ! किसी कारण से चित्रहार भी आज आठ पाँच की बजाय सात पाच पर आते वाला था। भदत के मत में अजब छी पुलक पी भौर बो पे चमक कि डे बूढ़ो दुवक गुवतियो से आंगन बढ़ा पड़ा है। लोग भानन्दिते होरहे हैं और उसकी तारीफ किये जा रहे है! भाई वाह्‌ भदन क्या चीज लाया षै? नेतों की तरस मिट गयी। दूसरी तरफ सेच भावै मँ साधियो के साम्ले मे नही क्षाकनी पड़ेगी । अव बहु विज्ञापनोसे लैकर पिले सुर मे सुर हमारा, और देर राठ की फिल्मो तक हर चर्चा में अधिकार पूर्वक भाष ले शकेगा। इतने दिन तो वह बहस के लिये रषी गृहृ उठता धा, लेकिन उसके साथी बार वार धकियावे हुए ले जाते टी०वी० रीरियलो की ओर 1 टी० बी० ही नही तो सीरियलो के बारे में मदनवया बोले ? परन्तु अब>-नो प्राब्लम । उसे ध्यान हो नहीं था कि उसके बूटो तले भन्न ठे दनो रो कचूमर निबल रहा है । शामावा तिलमिला उठा) उसके चेहरे की शुरिया बस गपी । उसने बच दिऐों पे रतन को तरफ देखा। बढ़ शुस्करा रहा भा। धव रामावा के लिये यर्दाश्त के बाहर हो गया। वह झ्पटता हुआ गया ओर नरसनी पकड़कर दिलाने भगा. उतर नीचे । र कद्ता हूं, इसी घडो उतर जा । “अरे--अरे बापू १ यह कण करते हो ? विर जाञ्यान 4 बर्थ! द उत्साह पुन: सौट आया। ये खिलखियाने लगे। परन्तु उनको खुशी पानी के शुलदुले की तरह फट धपी । भदन ने उन बु तड्‌ खद दपा); चह ऐन्ट्रीता त्तार बी काईज अगने दोस्त बी तरफ फेक कर नीचे उतरा। बसे उसका काम पूर्ण हो गया था । अब तो केवल सेट से तार जोडकर ऑन भर करना था) भइन ने अपने दोस्त को इशारा दिया। अर्थात्‌ बूझा गुछ भी कहता रहे, तुम कर दो श्रीपणेश । শনি জী খাই पाई इगट्दी कर दुमे पड्माया-लियाया, झुभी दोड़ी लक बह मश मही हिया 1 हिनेसा भी मो ने दिखायर हो देखा । दिन-शाद एक दर दिये बूरो बायों के सपने / 17




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