साहेब कबीर के साखी -ग्रंथ की अवतरणिका | Saheb Kabir Sahab Ka Sakhi Granth Ki Avtarnika

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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रद उर्दू के एक कि ने भी चड़ी लम्बी उड़ान मारी थी; परन्तु अन्त में विफल होकर आप अन्पेरे के खन्दक में गिरे गये । छुनिये-- “नतोमेंरदा नतो तूरहा, रहो सो बेखबरी रही ” सत्यतः वह जीव और ईश्वर से परे का पद है; किन्द, प्रह्तानघन होने के कारण अन्यकार नहीं प्रकाश है । उसी अपर्णनीय निनरूप को थ्राप्त करनेवाले महात्मा भी दयालु होने के कारण साक्षी चनकर अपने निर्णायक बचनों के द्वारा अनेक जटिठ सप्रस्पाओं को घुरशाया करते हैं। स्वरूप साती के बोध और निर्णापक होने के कारण सदुगुरु के वचन भी साक्षीवचन हैं । ऐस दी साली वनों का संग्रह होने के कारण इसका नाम साख़ीप्रन्य है । साछी छुचेताश्वितिपाश्ररूप: सवा शितो येन निनात्मंदेव४ । » मन्वपैसं्ता गुगतत्ततो 5 भूत साखी “ति विज्ञानि युहूं भने तम। महन्त विचारदास शास्री ।




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