संगीत तत्वदर्शक भाग १ | Sangeet Tatvadarshak Bhag-1

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Sangeet Tatvadarshak Bhag-1 by विष्णु दिगम्बर - Vishnu Digambar

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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रद जम किसी स्वरसे ऊपरके स्वरफों या स्वरा उद्यारण फरिया जावे ता उसको थाख रीतिसे आरोइ करते दूं. और इसोतरद जय सिसो स्थासे नीचेया़े स्वर या स्वरा उद्यारण किया जाये तो उसको थास्रकार अवदेद कहते दें. वद इस रीतिसे. , तार , जारोह सा अपोद सारिगमपथनि निधपसगरिसा परिगमसपघनि निधपसगररेसा [नि | स्परोंरे भेद ही हू गानेके स्वर ६ प्रहार होते है और उनका क्रम यद हैं १ुद्व, कमल, अतिकोमल, तीच, तीघतर, तीयतम, पनतु भाज कल मचारमें माय दोद्दी भेद छोग समझते ६ दो यद हैं उतरा और चढ़ा ( तीन और फोमल ) इससे उयादे सरोक। भेद ने समझनेफे फारण बाफ़ीफे जो चार भेद ईं देह जिन जिन ग्ंमें आति ैं उन रागोंका पूर्ण स्परूण नहीं दाति सफता फारण कि, सबवफ मसनुस्य उन भेदाफों टीक नदी जान सदना ननतरू उन रागोंका स्वरूप छिस रीतिसे टीफ दोवे ! सम दाग्मोनियम बाजिम सब राग नदी बन सच्ते, ऐसा सो रोमेडी मोडी समझ हैं इसका यूल कारण सगर देखा सर सो यदी मजीत ोगा कि उन चारो भेदों से रदित दारमेनियन




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