रामनाम | Ram Nam
श्रेणी : साहित्य / Literature
लेखक :
Book Language
हिंदी | Hindi
पुस्तक का साइज :
5.64 MB
कुल पष्ठ :
83
श्रेणी :
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लेखक के बारे में अधिक जानकारी :
No Information available about मोहनदास करमचंद गांधी - Mohandas Karamchand Gandhi ( Mahatma Gandhi )
पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश
(Click to expand)रद रामनाम और राष्ट्रसेवा सवाल --क्या किसी पुरुष या स्त्रीको राष्ट्रीय सेवामे भाग लिये बिना रामनामके अच्चारण मात्रसे आत्मददन प्राप्त हो सकता है ? मैने यह प्रन जिसलिओअे पूछा है कि मेरी कुछ बहने कहा करती है कि हमको गृहस्थीके कामकाज करने तथा यदा-कदा दीन-दु खियोके प्रति दयाभाव दिखानेके अतिरिक्त और किसी कामकी जरूरत नहीं है। जवाब -- जिस प्रदनने केवल स्त्रियोको ही नही बल्कि बहुतेरे पुरुषोको भी अलझनमे डाल रखा है और मुझे भी जिसने धर्म-सकटमे डाला है। मुझे यह बात मालूम है कि कुछ लोग जिस सिद्धान्तके मानने- वाले है कि काम करनेकी कतओऔ जरूरत नहीं और परिश्रम मात्र त्यर्थ है। मैं जिस खयालकों बहुत अच्छा तो नहीं कह सकता । अलबत्ता अगर मुझे अुसे स्वीकार करना ही हो तो में असके अपने ही अर्थ लगाकर असे स्वीकार कर सकता ह। मेरी नम्र सम्मति यह है कि मनुष्यके विकासके लिअे परिश्रम करना अनिवायं है। फलका विचार किये बिना परिश्रम करना जरूरी है। रामनाम या अँसा ही कोओ पवित्र नाम जरूरी है-- महज लेनेके लिअ ही नहीं बल्कि आत्मशुद्धिके लिअे प्रयत्नोको सहारा पहुचानेके लिअ और आऔष्वरसे सीधे-सीधे रहनुमाओ पानेके लिअे। जिसलिओें रामनामका अुच्वारण कभी परिश्रमके बदले काम नहीं दे सकता । वह तो परिश्रमको अधिक बलवान बनाने और अुसे अचित मार्ग पर ले चलनेके लिअे है। यदि परिश्रम मात्र व्यर्थ है तब फिर घर-गृहस्थीकी चिन्ता क्यो और दीन-दु खियोको यदा-कदा सहायता किसलिअ ? जिसी प्रयत्नमें राष्ट्र- सेवाका अकुर भी मौजूद है । मेरे लिअे तो राष्ट्रसेवाका अर्थ मानव-जातिकी सेवा है। यहा तक कि कुटुम्बकी निल्प्ति भावसे की गओी सेवा भी मानव- जातिकी सेवा है। जिस प्रकारकी कौट्म्बिक सेवा अवश्य ही राष्ट्रसेवाकी ओर ले जाती है। रामनामसे मनुष्यमें अनासक्ति और समता आती है रामनाम आपत्तिकालमे अुसे कभी धर्मंच्युत नहीं होने देता। गरीबसे गरीब ८
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