कज्जाक काकेशस का उपन्यास | Kajjaak Kakeshas ka Upanyas

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Kajjaak Kakeshas ka Upanyas by डॉ नारायणदास खन्ना - Dr. Narayandas Khanna

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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रहता। यहूत पहले से ही उसे यह विष्वास होने लगा था कि इज्जत श्रीर हैसियत सव वाहियात है। फिर भी जब एक नृत्य-समारोह के श्रवसर पर राजकुमार सेर्जियस उसके पास झाया श्र उसने उससे णिप्टता से वात की उस समय श्रोलेनिन बडा प्रसन्न हुआ वह श्रपनी अन्त प्रेरणा के समक्ष तभी झुकता जव उसकी स्वच्छन्दता में बाधा न पड़ती । जव कभी वह किसी वात से प्रभावित होता आर उसे यह पता चल जाता कि इसके परिणामस्वरूप उसे परिश्रम श्रौर सघर्प - जीवन से साघारण- सा संघर्ष भी - करना होगा तो स्वाभाविक प्रवृत्ति वह क्ीघ्न ही इस बात का प्रयत्न करता कि जिस फ्रियाणीलता की श्रोर वह बढ रहा है अथवा जो श्रप्रिय ्नुभूति उसे हो रही है उनसे मुक्त होकर वह पुन श्रपनी स्वच्छन्दता प्राप्त करे । इस प्रकार उसने सामाजिक जीवन , लोक-सेवा , कृपि , सगीत , यहाँ तक कि स्त्रियों से प्रेम करने के उस क्षेत्र में भी प्रयोग किये जिसमें स्वय उसका श्रपना विस्वास न था। संगीत के लिए तो एक बार उसने अपना सारा जीवन ही लगा देने की ठान ली थी । वह सोचता रहा , विचारता रहा - मैं युवावस्था की उन श्रदूभुत शक्ति का उपयोग कँसे करूँ जो मनृप्य को जीदन में केबल एक वार प्राप्त होती है , उस शक्ति का नहीं जिसका सम्बन्ध मनप्य पे वौद्धिक विकास , उसकी श्रनुभूतियों श्रयवा उसके थिक्षण से होना है अपिनु उस सहज श्रावेग का जिससे मनुप्य श्रपना , अयवा - जैसा उसे प्रतीत हो रहा था -झपिन म्रह्माड का रुप इच्छानुसार निर्मित कर सकता हैं चाहे वह बला फे क्षेत्र में हो, या विज्ञान के , नारी-प्रेम के क्षेत्र में हो या व्यवहारिकता के। यह टीक है कि कुछ लोगो में इस का पूर्णत श्रभाव रहना है श्ौर जब वे जीवन में प्रवेश बनते है उस समय घ्पना सिर उसी जुए में ढाल देते है जिसे थे पहले-पहन देपने है घोर फिर पुरी उमानदारी के साथ श्रपने शेप जीवन में उसी के साथ स्वटने न्श्त 2-75 ५




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