बाल दीक्षा : एक विवेचन | Baal Diksha : Ek Vivechan

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Baal Diksha : Ek Vivechan by मुनि श्री नगराज जी - Muni Shri Nagraj Ji

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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( ७ ) नि कि सारी प्रकृति में चेततता काम कर रही है ।” सर जेम्स जीन्स कहते व्मा है-“+ १ हम इस विश्व में इतने अजनवी वयो टी आ घेंसने वाले नहीं 7 जैसे कि हम पहले सोचा करते थे ।” व॑ज्ञानिक जे. वी. एस हेल्डन --- 4 लिखते है---“२ सत्य यह्‌ है कि विर्व का मौलिक तत्व जड ही नही अपितु मन्‌ शौर चेतनाः दै 1 इसी प्रकार अब बहुत सारे वैज्ञानिक कहने लगे है,--३ कुछ समय पूर्व तक वैज्ञानिक क्षेत्र में नास्तिक होना एक फैशन की बात समझी जाती थी, परन्तु आज जो आदमी अपनी नास्तिकता पर যা करता हैं उसे बुरा समझा जाता है। यह श्रेय विज्ञान को ही है ।” अस्तु आधुनिक युग के ये ऐसे तथ्य हे जो समस्त मानव-समाज को एकाएक हिंसा से अहिंसा की ओर, भोग से त्याग की मोर और जडवाद से आत्मवाद की ओर बलछात्‌ ले जाते हेँं। ओं के सामने पटी यवनिका हट जाती ह १. “ प€ 276 00650 20001 50909150170 0915 23 छट ४९ $50 00002001 (155051105 00155150১ 2 138) २ € पणा 15 00960062026 58 10109, [615079110 15 00৩ ০9012] ০ 0£ 000 00150150 % (1116 ০৭০1০, 2০৮15, [प्फ 1936} २ पण र्ट 10206 220, ४ আঞও £0 30100 65:50 31100201610 50150050৩ 0110169 ० € 9 ^+&०05॥८ रिप ६0-093ए9 [020 1১০ शोल 1 115 1६007066 35 970090 11001550 1020159 (0 03৩ 120015 2 561६0८6 (3010006 2170 [০112107. 2 85-86১




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