अमृत सरोवर | Amrit Sarovar

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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ही पाधु-जीवन में श्रेष्ठता का निर्माण किया जी संकता है । भगवान्‌ का फर्थले हैं कि चाहे दिन हो या राधि, जिन महात्रतो को श्रगीकार करके चल रहे हो, उन महाव्रतो का भलीमाति पालन करो । जिस वक्त रात्रि हो श्रौर यह सोच रहे हो कि रात्रि मे सब सोये हुए हैं, मुझे कोई देखने वाला नहीं है-इस भावना को लेकर कत्तंव्य को मत छोडो | चाहे सवके बीच मे बेठे हुए हो तो भी नियमों का पालन करे तया एकाकी हो तव भौ उशी ख्प मे उनका पालन करें । नियम-पालन की स्थिति में कहीं पर भी स्खलन न भ्राने दं । जो भी प्रपने-प्रपने स्तर पर अपने त्रत, नियम तथा कत्तंव्य का पालन करता है, वह महावीर शासन की परम्परा में चलने वाले श्राचार्य के प्रनुशासन का वीरतापुरवेंक पालन करता है । मर्यादा-पालन में लुका-छिपी नही होनी चाहिये । सारी निर्धारित दिनचर्या के श्रनुसार जीवन का क्रम चलना चाहिये, जिसमे प्रार्थना, प्रतिक्रणण, गुरुवन्दन, शानाराधना, तपस्या, चितन-मनन प्रादि सवको सम्मिलितं करे । महावीर ने कहा है कि ऐसी नियमित दिनचर्या भ्रीर णासनपद्धत्ति मे चलने वाते शिष्य विनीत ज्ञात होते हैं ) ऐसे शिष्यो को श्राकीणं जाति के घोडो को उपमा दी गई है, जो स्वामी के चाबुक को उठने ही नही देते हैं याने कि पूर्णतया स्वामी के भ्रनुशासन में चलते हैं। ऐसे शिष्य गुरु के कहने की भी श्रपेक्षा नही करते हैं । वे उनका अ्रभिप्राय समझ कर ही कार्य कर लेते हैं । व्रत, नियम, कत्तव्य प्नोर मर्यादा-पालन के द्रसी विन्दु से ऊपर उठ कर जो नात्मा कर्मो कौ निजरा करने हुए चार घनघाती कर्मो का क्षय कृर लेती है, वह भ्ररिहन्त वन जाती है । ध्ररिहृन्त वनने कामागं किसी श्रात्माके लिये बन्द नहीं है । ध्यान रखिये कि आप पूरी निष्ठा से पुरुपार्थ करेंगे तथा ५ वीतराग देव के मागं पर कर्मठतापूरवेक चलेगे तो श्राप भौ घनघाती कर्मों को नष्ट कर सकेंगे । यदि प्रापने भ्रपनी श्रात्मा के इन चारों भरियो का हनन कर लिया নী গা मी ग्नरिहन्त वन जाएगे भौर परमात्मा का दर्शन कर सकेंगे । साधुनो व श्रावफों के कत्त व्य-- कर्म रूपी प्ररियों याने शत्रुओ्नों के हनन में ही आत्मा की विजयश्री रही हुई है भौर इसी लक्ष्य को सामने रखकर साघुप्रो व श्वावर्कों को अपने फत्त व्यों का भास्थापूर्वक: पालन करना चाहिये । घास्मकासै ने शिप्यो की श्रेणियो फे सम्बन्ध मे कहा है कि--




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