शरात्-साहित्य (दूसरा भाग) | Sharat Sahitya (Dusra Bhaag)
लेखक :
Book Language
हिंदी | Hindi
पुस्तक का साइज :
5 MB
कुल पष्ठ :
155
श्रेणी :
हमें इस पुस्तक की श्रेणी ज्ञात नहीं है |आप कमेन्ट में श्रेणी सुझा सकते हैं |
यदि इस पुस्तक की जानकारी में कोई त्रुटि है या फिर आपको इस पुस्तक से सम्बंधित कोई भी सुझाव अथवा शिकायत है तो उसे यहाँ दर्ज कर सकते हैं
लेखक के बारे में अधिक जानकारी :
No Information available about रामचन्द्र वर्मा - Ramchandra Verma
पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश
(Click to expand)< स्वामी
मैने कहा--यों ही मीगती हुई घर चली जाऊँगी ।
“ अच्छा, अगर यह आसाम-जैसी पहाड़ी बृष्टि हो तो क्या करो !
कहानियों सदास ही मुझे अच्छी लगती हैं | उसकी जरा-सी गन्ध मिलते
ही मेरी दृष्टि तुर्त ही आकाहासे उतर कर नरेन््द्रके मुखपर आ বাই । में पूछ
बेटी --तो क्या उस देशमे वषोके समय कोई बाहर नहीं निकलता !
नरेन्द्र बोला--बिलकुछ नहीं | शरीरमें तीरकी तरह ल्मती है |
८८ अच्छा, क्या तुमने वहं बृष्टि देखी हे १
इस बार मेरे इस जले मुहसे “तुम बाहर निकल गया । अब सोचती
हूँ कि उस समय यह जीभ भी साथ ही साथ मुहसे गरकर गिर जाती, तो बहुत
अच्छा होता !
उसन कहा--अब इसके बाद अगर काह किसीकों “आप कहे, तो वह
दूसरेका मरा-मुंह देखे |
“६ कसम क्यो दिला दी ! में तो किसी तरह भी “ तुम न कहूँगी।
४“ अच्छी बात है; तो फिर तुम मेरा मरा-मुँह देखना । `
८: कसम काई चीज नहीं । मे उसे नष्ट मानती |
“ केस नहीं मानती, यह एक बार “ आप ” कहकर प्रमाणित कर दो | `
मन-ही-मन बिगडकर बोली --मुँह-जली ! अब वह तरा जटा तेज करटौ
रहा ? मुँहसे तो किसी तरह “आप निकाल ही न सकी ! किन्तु दुर्गतिका यदि
उस दिन यहीं अन्त हो जाता !
धीर धरि आकाशते पानी गिरना तौ ङु कम हुम, किन्तु प्रश्वीके जलने
तो माना सारी दुनियाको घोलकर एकाकार कर दिया | सन्ध्या हो रही थी |
थोड़ेस फूलोकी ऑचलमें बॉधकर कीचड़-भेरे बागके रास्तेसे मे चल पड़ी |
नरेन्द्र बोला--चले, तुम्हे पहुँचा आऊँ |
मेने कंदा-- नही ।
मनने मानो कह दिया कि यह अच्छा नहीं हो रहा है । पर भाग्यमे ख्खिको
कैसे मिटा सकती थीं ! बागके किनोर आकर मारे भयके भरी अक्लन जवाब
दे दिया | सारा नाछा जलसे भरा हुआ था, पार केसे होऊ !
नरेन्द्र मेरे साथ नहीं आया, वहीं खड़ा खड़ा देखता रहा । जब उसने मुझ
User Reviews
No Reviews | Add Yours...