भारतीय भवनों की कहानी | Bhartiy Bhavano Ki Kahani

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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आगरे का किला १५ मिलता था । तस्त के सामने तीन फुट ऊंची संगमरमर को एक परिया है जिस पर खड़े होकर वज़्ीर बादशाह के फ़रमान लिया करता था। दाहिनी श्रोर की जालियों से बेगमे भांककर दीवाने-श्राम का दरबार देखा करती थीं । बादशाही ज़माने में त्यौहारों और उत्सवों के दिन दीवाने-ग्राम के खंभे सुनहरी कारचोबी से ठक विये जाते थे भ्रौर ऊपर साटन की पूलदार चांदनो तन जाती थी । फो कोमती नरम कालोनों श्रोर ग़लीचों से ढक दिया जाता था । बहर हाल से भी बड़ा शामियाना तन जाता था जिसके बाँस चाँदी के काम से ढक दिये जाते थे । दीवाने-श्राम के सामने जहगीर का बनवाया हौ है। एक हो पत्थर को काटकर बनाया गया है, भीतर-बाहर सोढ़ियाँ हैं । पाँच फुट गहरा है यह। शायद पहले यह जहाँगीरो महल में था । हरम की राह मोना-बाजार से होकर जाती है । यह भीतरी मीना-बाज्ञार है। मोना-बाज्ञार की कहानी बड़ी दिलचस्प है। यहाँ एक बनावटी मेला लगा करता था, जनाना बाज्ञार, जिसमे श्रमीरों श्रौर राजाश्रों को खुबसुरत रानियां श्रौर बेगमे श्रौर शाहजादियां ही सौदागर बनकर माल बेचतो थीं श्रोर बादशाह श्रोर বাল জহীহলী আঁ। सोदे का मोल-तोल खूब होता था और बादशाह एक-एक




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