तूफानों के बीच | Toofano Ke Beech

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Toofano Ke Beech by रांगेय राघव - Rangeya Raghav

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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रात हो गईं है । चारों शरीर सन्नाटा छा- गया है । आम के सघन दृच्तो में श्रैँंघेरा-छिपा बैठा है । धुँधली चाँदनी श्रपने पंख फैजाये जैसे श्रनन्त काश में उड़ जाने के लिए. प्रथ्वी पर तैयार बैठी है। मैं चला जा रददा हूँ । शहर की श्रन्न कमिटी को सीटिंग श्रभी दी समाप्त हुई थी। एक मारवाड़ी कपड़े के व्यापारी के यहाँ जब बह बहस गर्म होने लगी थी घर के कोने के मन्दिर में से घशिटयाँ बज उठी थीं और क्षण भ्रर के लिए. बहस करनेवालों के दिल इष्के दो गये थे । कुष्टिया जहाँ साइकिल रिव्शा के श्लावा श्रीर कोई सास सवारी नहों थी बाँ श्रमरीकन लारी श्रौर ट्रकों के श्रा जाने से. एक प्रकार की नवीनता आ गई थी । सारा टाउन चौंक- चौंक उठा था । मुकके याद श्राया श्राज जब कि खाने को नददीं मिलता था | चारों ओर संकट के बादल छा रहे थे । वदद हिन्दू और मुसलमान मध्यव्ग के प्राणी श्रब भी पने स्वार्थों में लिप लड़ रहे थे । नुकीली दाढ़ीवाला एक मज़दूर बार- बार बीच में एका कराने का प्रयसन करता था | जीवन की उस केठोरता के बाद यह नीरवता यह शांति । मेरा मन जैसे एकबारगी सिंदर उठा | चाँदनी ें बंगाल की युगान्तर की . करण राशिमी मंद्र स्वर से स्नायवित . कंपन-ता भर रददी थी । मैं नहीं जानता सब ऐला ही सोचेंगे किन्तु सुक्ते यदद प्रकृति का सौंदय्य एक स्वप्नलोक-सा लंग रहा है । धर सो रहे हैं दिन में वह श्रालसाते हैं । एक दिन उन्हें श्रपने ऊपर गव था किन्तु श्राज मानव को ही अपनी सत्ता एक श्रपमान के भवर में पड़ी त्रस्त प्रतीत होती थी । रा में एक टी स्टॉल पर में रुक गया । कुछ मज़दूर बैठे बातचीत कर रहें थे । थुघद्ें चिराग की रोशनी में मैंने देखा वद्द वह स्ट्रॉल था जिसके




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