मधु चिकित्सा | Madhu-chikititsa

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Book Image : मधु चिकित्सा  - Madhu-chikititsa

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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मचु-चिकित्सा । १३ ^ 0८ ८ ५८५०5 ^^ ^~ +~ पर न चढ़ाया जाय । आग पर चढ़ाने और पकानेसे मधु विषके समान हो जाता है और उसके सेवनसे शरीरमे बहुत अधिक दाह उत्पन्न होता है। जो मधु काछा, बहुत पतला या दुग्गन्धयुक्त हो उसका भी कभी सेवन नही करना चाहिए । हमारे यहाँ वैयकमे मधु शीतल, करैठा, मधुर, हका, स्वादिष्ट, रूखा, राही, अश्निदीपक, व्ण॑कारक, कान्तिवधक, णदोघक, मेघाजनक, विशद, इष्य, रुचिकारक, आनन्द्दायक, सशोधक, बलकारक, त्रिदोषनाशक, स्वरसोधक, हृदयके लिए हितकारी ओर घावको भरनेवाटा कहा गया है। इसके अतिरिक्त वह कोढ, बवासीर, खाँसी, पित्त, रुधिरविकार , कफ, प्रमेह, कमि, मद, ग्नि, तृषा, वमन, अतिसार, दाह, हिचकी वायु, विष्‌, श्रम, सोथ, पीनस, श्वास, रक्तप्रमेह, रक्तातिसार, रक्तपित्त मोह, पाश्चशूल, नेत्ररोग, संग्रहणी और कोष्ठबद्धता आदिमे भी बहुत अधिक हितकारी तथा गुणकारी माना गया है। नया मधु दस्तावर, बल्वधक और कफनाशक कहा गया है । ओर एक वषे या इससे अधिकका पुराना मधु उक्त समस्त गुणोसे युक्त बतलाया गया है । हिकमतमे भी इसके जो गुण कहै गए है वे बहुत कु वैयकमे कहे इए गुणोसे मिलते जुछते है। डाक्टर लोग गले और छातीके रोगमे इसका बहुत व्यवहार करते है और इसे बहुत बल्वर्धक मानते है। सभी देशोंमे औषधोंमें इसका बहुत अधिक व्यवहार होता है । बहृतसे कोग इसे यो ही रोटीके साथ और बहुत से लोग दूधके साथ मिलाकर पीते हैं। इसे घीके साथ मिलाकर खाना मना है। इसके अतिरिक्त इसके और भी कई उपयोग होते है। जिन स्थानोंमे यह अधिकतासे होता है और चीनी कम मिलती है उन स्थानोमे छोग मिठाइयोँ आदि इसीकी बनाते है। विलायतवाले मुरब्बे आदि बनानेमें इसका बहुत अधिक




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