गोमतेश गाथा | Gomtesh Gatha
श्रेणी : धार्मिक / Religious
लेखक :
Book Language
हिंदी | Hindi
पुस्तक का साइज :
4 MB
कुल पष्ठ :
246
श्रेणी :
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लेखक के बारे में अधिक जानकारी :
पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश
(Click to expand)अनक निरश मेरे लिए अत्यन्त उपयागी हुए हैं। इस पुस्तव वे सम्दध म अत
ध्वनि लिखवर तो माताजी ने मेरे प्रति अपन वात्सल्य को ही लिपियद वर दिया
है। मेरे गुर श्रीमान् पण्डित जगमोहनलालजी सिद्धान्तशास्त्री से मुप्त पप-यग पर
जो प्ररणां परामश और प्रोत्साहन मिला, वह मरा राहुज श्राप्तव्य है। य सभी
गुदजन भरे लिए प्रणम्य हैं। उन सभी व आशीष का यात्र दत स्रा इसके लिए मैं
अपने भाग्य की सराहना करता हू ।
नमिच: सिद्धान्तवर्ती और चामुण्डराय आदि एनिहापित' पात्रा के चित्रण
मे डा० ज्योति प्रसा” जन कौ सामग्री का मैंने उपयोग किया है। ग्रोम्मटसार म
নব सम्पात्कोय से और प्रण्डित क्लाशचद्रजी प्रस्तावना से तथा पिना
विशुद्धमती माताजी की त्रितोकसार की टीका म पण्डित पन्नातालजी साहित्या
चाय की प्रस्तावना मे भी इन पात्रों के विषय मे उपयोगी भूचनाए प्राप्त हुई हैं।
दृष्टियुद्ध के अकन दी कल्पना ध्री मिधौलात जन क कव्य परोमरण्वर् की
प्रकिया स॑ प्रस्फुटित हुई है ! अजितसंद आचाय ओर महासती अतिम-्वे का जीवन
परिचय श्री जी० प्रद्धप्प बे उपयास 'दान चितार्माण स लिया गया है। श्री
राखालटास वन्धापाष्याय वी पापाण-क्था नेमेर च॒द्गरगिरि को बा 41 वी प्ररणा
दी है। उबत सभी महानुभावों के भ्रति कृतशता चापित करत हुए मैं स्वीकारमा
चाहता हूँ कि इस उपयास मे मरा अपना विशेष बुछ नहीं है। उपयन सदुछ
पल पत्तियां एकव बरद गुतत्स्त के निर्माण में माली की जो भूमिवा हाती है
पुराण और इतिहास से बुछ रोचक प्रसंग लेबर यहाँ गूंप देते का बच्चा ही प्रयत्त
मैंने किया है। अयाध्या बे बुद्ध महामंत्री वाटुवर्ल की दललभा जयभजरी,
चामुण्डदराय व परिकर में सरस्वती ओर सौरभ पण्डिताचाय और अम्मा जसे
पात्रों को अवश्य मरी बल्यता न गरदा है। उनकी प्रासगिवता का मैंने स्रिद्ध भी
करना चाहा है ।
पौराणिक प्रस का उन्तयन न हो इतिहास की रेखाओं का अतित्रमण न
है एमी सावधानी बतने हुए जहाँ भी सधि मिली वहाँ कपना की तूलिका से उन
रेखाओं मे रण भरन की चप्टा मैंन की है। पात्रों की सहज मानदीय सवेदताओ
को मुखरता प्रदान करन का जहाँ अवसर मिला वहाँ मरी लखनी स्वन अ्नापूवक
चली है। इतिद्वास बे ढाचे पर उपन्याम ष आभरण अलकार सजाने वै लिए पह
आवश्यक भी था। उदू शटों से बचने की सावधानी म वुछ दुरुह् श्लो व प्रयाग
की मेरी वाध्यता रही है पर सामाय हिन्टी पाठक के लिए यह भाषा दुगम नहीं
है ऐसा मरा विश्वास है। टो जगह मुझ ऐसा लगा कि भावा की बामलता को
व्यक्त करन के लिए वी कोमल शब्टन्योजना मैं नही कर था रहा ই ব্হামুশ
काव्य का सहारा तेना पडा है। बाहुबली के वन-यमन के समय जयमज़री भी
भावताओं का चित्रण और गुल्लिका-अज्जी व अतर्धात हो जाने का दृश्य कविता
श
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