अध्यात्मयोग और चित्त विकलन | Adhyatmyog Aur Chitt Vikalan

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Adhyatmyog Aur Chitt Vikalan by वेंकटेश्वर शर्मा -Venkteshwar Sharma

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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विषय-य्रवेर्श घ क्योंकि सन्देह करनेवानितन-शक्ति भो तो क्षःष्दी रै भैः कहने से प्रायः देह-विशिष्ट (क्क क्योंकि में? कहते ही व्यक्ति को अमुक का पुत्र मैं), “अमुक (णार का अनुभव होता है। व्यवहार मे चैतन्य और शरीर का भेद 81 चेतन ओर जड শী के तादात्म्य पर व्यवहार अवलम्बित है । # मनुष्य को सुख-दुःख, तृप्ति अतृप्ति आदि का अनुभव होता है। सुख #दनाएँ हैं। वांह्म प्रप्चगत विषयों के सम्पक से व्यक्ति को सुख-हुःख का है । विषय बाह्य प्रपञ्च मे है | उनसे होनेवाली वेदना तथा माव व्यक्ति के अन्दर ति ह | इससे पता चलता ह कि अन्तरङ्ग श्रौर बहिरङ्ग दोनों को जाननेवाला कु क ओर बह दोनो के मध्यदेश म है] इस मध्यवर्ती 'कुछ” को मन कहते हैं। इसी दष्ट से “मनुः का यह कथन है :-- न 'उद्‌बबहात्मनश्चैव मनः सदसदात्मकम्‌ } ? है फिर श्रात्मा से सत्‌ श्रौर असत्‌ मावमय, दृश्य-अदृश्य-स्वरूप, चेतन-जड-स्वभाववाले मन को प्रकट किया | मन मध्यवर्ती हैं। अपने स्थान के बल से बह दो राज्यो का प्रभु है। उसकी शक्ति से दो प्रान्त रञ्जित होते रहते हैं। यदि हम मन को वश में कर ले तो दोनों अन्तरज्ञ और वहिरज्ञ हमारे वशीभूत हो जायेंगे; क्योंकि जितने संवेद्य हैं, सब मन से ही संवेदना पाते हैं। अन्तरज्ञ ओर वहिरद्ञ दोनों संवेद्य है] मन इन दोनो के लिए कीलक स्वरूप है । ्रतएव संसार के सभी विद्वानो ने मन कौ प्रधानता स्वीकार कर ली दै ~) मन एव मटुष्याणं कारणं बन्धमोकयोः । मनुष्यों के बन्ध और मोक्ष का कारण मन ही है| 'जीवश्चित्तपरिस्पन्दः पुंसां चित्तं स एव च ।' जीव चित्त का परिस्पन्द ই श्रौर पुरुष का चित्त जैसा है, पुरुष वैसा ही है । मन को छोडकर ओर कुछ नहीं है। हम मन के अभिव्यक्त रूप है। शरीर केवल नश्वर विश्वासभात्र है। जैसे विचार होते हैं, मनुष्य वैसा ही होता है।* 'जाकी रही भावना जैसी, हरि मूरति देखी तिन तैसीः--ऐसे अनेक वाक्य मिलते है, जिनसे स्पष्ट मालूम होता है किं मन एक मुख्य अवयव हे (सुख यां शान्ति के आलम्बन का अन्वेषण करते-करते मनुष्य ने मन को पाया, जो विशिष्ट-स्थानवर्ती है, जिसके ज्ञान से अन्तरद्ध और वहिरज्ञ दोनों वशंवद होते ই। अतः मानवी प्रज्ञा ने मन का अध्ययन किया और अब भी कर रही है | ) इस विषय का अध्ययन करते समय पाश्चात्य देशो के लोग प्रायः मन के भौतिक रूप का ही अध्ययन करते दे) भौतिक जगत मे अमिलषित शान्ति पाने पर भी उसकी असत्यता पर उन्हे विश्वास नही होता । अतः मन में और भूत जगत्‌ में क्‍या १--मनुस्छति, १-१४ । -- 10616 18 20172 एप 0106, € 86 90025980108 0$ 16 006 77700) 00 19 001 2 10118] एलान, 98 8 7141 एणा 80 28 ४९.-- कर थ ५१४४३, 7707568595৫ 486110201 21229725706 5. 104 ^




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