वल्लभ पुष्टि प्रकाश भाग 2 | Shri Vallabhpushtiprakash 2
लेखक :
Book Language
हिंदी | Hindi
पुस्तक का साइज :
137 MB
कुल पष्ठ :
395
श्रेणी :
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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश
(Click to expand)॥ श्रीकृष्णाय नमः ॥ च्रीगोषीजनवह्छभाय नमः ॥ |
| अथ श्रासितों घरकी सेवा प्रकाशमें सेवाकी रीतिसों श्रीपु- |
| एिमागमं श्रीराङ्करनीका सेवाविषे केवर सेह वात्सट्य सुख्य |
दे, जैसे माता अपने बालककी वत्तठ्ता विचारत रहे । और | `
। || भषनेको गरमी खेदे ओर शीतकालमें अपनेको सरदी छगेहै ॥|
` ॥ रत रहे सो ही सेवाहे । ओर केवल जहाँ माहात्म्ये सो पूना ||
। ` | कै वड प्रीतकी पहचान इ । जेते गोविन्दस्वामीने गायो हे कि, ||
| भीत्तम प्रीत इंते पेये” जाप्रकार श्रीवजभक्तननें श्रीगकुर- ॥ `
` | नकी जड़ यह सेवा है। जैसे या पदमें गायो हे के सेवारीत ॥
“ ॥ प्रीत ब्रजजनका जनाहत जग प्रगटाई । दास शरण हारेवाग-॥
| 4 || “भन साले भाव भाषिक देव । कोरिसाधन करे को तोख | `
|| पुरुषते ्चिंय भाव उपज्यो से उ्टी रीत ॥ २॥ वसन भषण |
|| पतित्रता ल्ली अपने पतिकी अप्तन्नता चाहेवो करे । ओर (यथा |
| देड्ढे तथा देवे ) इत्यादि शास्त्रीय विधि पूर्वक जैसे उष्णकालमें |
॥ और समयपर भूख प्यास छगेहे । तामें जैसे आपन सर्व प्रका- ॥
॥ रसों रक्षा करें हैं। तेसे समयाचुसार भगवत् स्वरुपमेंह विचा- | `
॥ कही जायहे। हीयाँ माहात्म्यकी विशेषता नहीं हे। हीयाँ तो ||
| जक भ्रेम विचारके सेवा करी है ताही प्रकार श्रीत्ृजभक्त-॥
॥ धीशकी चरणरेणु निधि पाई” ॥ ओर सूरदासजीने गायो है।
॥ न माने सेव ॥ ३ ॥ धूम्र केतु कमार मांग्यो कौन मारण नीत । |`
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