वल्लभ पुष्टि प्रकाश भाग 2 | Shri Vallabhpushtiprakash 2

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Shri Vallabhpushtiprakash 2 by गंगाविष्णु श्रीकृष्णदास - Ganga Vishnu Shrikrishnadas

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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॥ श्रीकृष्णाय नमः ॥ च्रीगोषीजनवह्छभाय नमः ॥ | | अथ श्रासितों घरकी सेवा प्रकाशमें सेवाकी रीतिसों श्रीपु- | | एिमागमं श्रीराङ्करनीका सेवाविषे केवर सेह वात्सट्य सुख्य | दे, जैसे माता अपने बालककी वत्तठ्ता विचारत रहे । और | ` । || भषनेको गरमी खेदे ओर शीतकालमें अपनेको सरदी छगेहै ॥| ` ॥ रत रहे सो ही सेवाहे । ओर केवल जहाँ माहात्म्ये सो पूना || । ` | कै वड प्रीतकी पहचान इ । जेते गोविन्दस्वामीने गायो हे कि, || | भीत्तम प्रीत इंते पेये” जाप्रकार श्रीवजभक्तननें श्रीगकुर- ॥ ` ` | नकी जड़ यह सेवा है। जैसे या पदमें गायो हे के सेवारीत ॥ “ ॥ प्रीत ब्रजजनका जनाहत जग प्रगटाई । दास शरण हारेवाग-॥ | 4 || “भन साले भाव भाषिक देव । कोरिसाधन करे को तोख | ` || पुरुषते ्चिंय भाव उपज्यो से उ्टी रीत ॥ २॥ वसन भषण | || पतित्रता ल्ली अपने पतिकी अप्तन्नता चाहेवो करे । ओर (यथा | | देड्ढे तथा देवे ) इत्यादि शास्त्रीय विधि पूर्वक जैसे उष्णकालमें | ॥ और समयपर भूख प्यास छगेहे । तामें जैसे आपन सर्व प्रका- ॥ ॥ रसों रक्षा करें हैं। तेसे समयाचुसार भगवत्‌ स्वरुपमेंह विचा- | ` ॥ कही जायहे। हीयाँ माहात्म्यकी विशेषता नहीं हे। हीयाँ तो || | जक भ्रेम विचारके सेवा करी है ताही प्रकार श्रीत्ृजभक्त-॥ ॥ धीशकी चरणरेणु निधि पाई” ॥ ओर सूरदासजीने गायो है। ॥ न माने सेव ॥ ३ ॥ धूम्र केतु कमार मांग्यो कौन मारण नीत । |`




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