मेवाड़ पतन | Mevad Patan
लेखक :
Book Language
हिंदी | Hindi
पुस्तक का साइज :
12 MB
कुल पष्ठ :
122
श्रेणी :
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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश
(Click to expand)ट्य | पहला अंक १९९
राणा--सामन्तगण, हमारी समझमसें तो युद्ध व्यर्थ है । हम सुगल-
सेनापतिके साथ सन्घि करेंगे । चोबदार, सुगछ-दूतकों बुढाओ ।
( चोत्रदार जाता है । )
गोविन्द ०--महदाराणा प्रताप ! सद्दाराणा प्रताप | अच्छा हो, यदि ठम
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स्वगंमें बैठे हुए यहाँकी ये बातें न सुन सको | दद्र | तुम अपने मेर स्वस्ते
इस दीन उच्चारणकों दबा दो! आर मेवाड़ ! सुगलोंकी प्रमुता स्वीकार
करनेके पहले ही ठुम किसी मारी भूकम्पसे ध्वंस हो जाओ !
[ चोबदारके राथ मुगढ-दूत आता है। ]
राणा--ठुस अपने सेनापतिसे जाकर कहो कि हम सन्धि करनेके लिए
तैयार हैं ।
| तेजीके साथ झपटती हुई सत्यवती आती है । ]
सत्यपबती--कभी नहीं, कभी नहीं । सामन्तगण, आप लोग युद्धके लिए
तैयार हो जायुँ,.। राणाजी यदि आप लोगोंको रणक्षेत्रमें न ले जा तो आप
छोगोकी सेनाका संचालन मैं करूँगी |
गोविन्द०--देवी, तुम कौन दो ? इस धोर अन्धकारमें विजठीकी तरह
आ खड़ी होनेवाली ठुम कौन हो? यह कोमल और गम्भीर वज़-ध्वनि
किसकी सुनाई पड़ती है १
राणा--सच बतलाओ, तुम कौन दह्ये ए
सयवती-- महाराज, मैं एक चारणी हूँ । मैं मेवाड़के गाँवों और
तराइयोंमें उसकी महिमा गाती फिरती हूँ, इससे अधिक मेरे किसी और
परिचयकी आवश्यकता नहीं ।
खामन्तगण--आश्र्य |
सत्यवती--सामन्तगण, राणाजी उद्यसागरके प्रासाद-कुंजमें पड़े पड़े
चिलासके स्वप्न देखा करें । में भाप लोगोंको युद्ध-क्षेत्रमें ले चलेगी ।
गोविन्द ०--यह कया ! मेरे शरीरमें यदद यौवनका तेज कहूँसि आ गया !
मुझमें यह आनन्द, यदद उत्साह, कहाखे आकर मर गया ! सामन्तगण, आप
लोग, मद्दाराणा प्रतापके पुन्रकी इस अपबधि रक्षा कीजिए । इस विलासको
लात मारिए, इन सव्र लिलोनोको नेष्ट कर दीजिए । ( पीतलका एक मीर-
फश उठाकर गोवित्दसिंद पास ही लगे हुए एक बड़े शीशेपर फैंककर मारते
हैं। शीशा चूर चूर हो जाता हैं ।
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