मेवाड़ पतन | Mevad Patan

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Mevad Patan  by रामचन्द्र वर्मा - Ramchandra Verma

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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ट्य | पहला अंक १९९ राणा--सामन्तगण, हमारी समझमसें तो युद्ध व्यर्थ है । हम सुगल- सेनापतिके साथ सन्घि करेंगे । चोबदार, सुगछ-दूतकों बुढाओ । ( चोत्रदार जाता है । ) गोविन्द ०--महदाराणा प्रताप ! सद्दाराणा प्रताप | अच्छा हो, यदि ठम ५१ ४ 4 स्वगंमें बैठे हुए यहाँकी ये बातें न सुन सको | दद्र | तुम अपने मेर स्वस्ते इस दीन उच्चारणकों दबा दो! आर मेवाड़ ! सुगलोंकी प्रमुता स्वीकार करनेके पहले ही ठुम किसी मारी भूकम्पसे ध्वंस हो जाओ ! [ चोबदारके राथ मुगढ-दूत आता है। ] राणा--ठुस अपने सेनापतिसे जाकर कहो कि हम सन्धि करनेके लिए तैयार हैं । | तेजीके साथ झपटती हुई सत्यवती आती है । ] सत्यपबती--कभी नहीं, कभी नहीं । सामन्तगण, आप लोग युद्धके लिए तैयार हो जायुँ,.। राणाजी यदि आप लोगोंको रणक्षेत्रमें न ले जा तो आप छोगोकी सेनाका संचालन मैं करूँगी | गोविन्द०--देवी, तुम कौन दो ? इस धोर अन्धकारमें विजठीकी तरह आ खड़ी होनेवाली ठुम कौन हो? यह कोमल और गम्भीर वज़-ध्वनि किसकी सुनाई पड़ती है १ राणा--सच बतलाओ, तुम कौन दह्ये ए सयवती-- महाराज, मैं एक चारणी हूँ । मैं मेवाड़के गाँवों और तराइयोंमें उसकी महिमा गाती फिरती हूँ, इससे अधिक मेरे किसी और परिचयकी आवश्यकता नहीं । खामन्तगण--आश्र्य | सत्यवती--सामन्तगण, राणाजी उद्यसागरके प्रासाद-कुंजमें पड़े पड़े चिलासके स्वप्न देखा करें । में भाप लोगोंको युद्ध-क्षेत्रमें ले चलेगी । गोविन्द ०--यह कया ! मेरे शरीरमें यदद यौवनका तेज कहूँसि आ गया ! मुझमें यह आनन्द, यदद उत्साह, कहाखे आकर मर गया ! सामन्तगण, आप लोग, मद्दाराणा प्रतापके पुन्रकी इस अपबधि रक्षा कीजिए । इस विलासको लात मारिए, इन सव्र लिलोनोको नेष्ट कर दीजिए । ( पीतलका एक मीर- फश उठाकर गोवित्दसिंद पास ही लगे हुए एक बड़े शीशेपर फैंककर मारते हैं। शीशा चूर चूर हो जाता हैं ।




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