समयसार : निश्चय और व्यवहार की यात्रा | Samaysaar Nishchay Aur Vyavahar Ki Yatra

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Samaysaar Nishchay Aur Vyavahar Ki Yatra  by युवाचार्य महाप्रज्ञ - Yuvacharya Mahapragya

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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6 वमयसार निश्चय और व्यवहार की यात्रा रूप को ही देखते हैं, केवल बाहर का दर्शन करते हैं और उसी के आधार पर निर्णय ले लेते हैं। बहिर्दर्शन मिधथ्यादृष्टि है। उसका परिणाम है - लडाई और झगडा, कलह और छीना-झपटी, लूट-खसौट, हत्या और आतंक। जब तक समाज आन्मदर्शी नही बनेगा, अन्तर्दर्शी नही बनेगा, भीतर जाकर नही देखेगा तब तक हिंसा की इन समस्याओ को कभी रोका नहीं जा सकेंगा। थे हिसा के सहज परिणाम हैं। हिसा को रोकने का उपाय है अन्तर्दशत और हिसा को उभारने का उपाय है बाहरी दर्शन। निश्चयनय : व्यवहारनय अध्यात्म के आचार्यों ने इन सारी समस्या ओ को दो शब्दों में समेट लिया-बाहरी दर्शन और अन्तर्दर्शन या आत्मदर्शन। उन्होने कहा- यटि सेमम्या का समाधान चाहने हो नो अन्तर्दर्शन मे आओ। समस्या ओ को बदाना चाहते हो नो बाहरी दशन मे जाओं। जटिल है आत्मदर्शन की बात। अगर व्यक्ति अन्तर्दशन मे जाए तो जीवन -यात्रा की समस्याएं कैसे सलझे? दोनो ओर जटिल समस्या है। भगवान्‌ महावीर ने निश्चयनय और व्यवहारनय की भाषा में इसका समाधान दिया। आचार्य कन्दकन्द ने भी निशभ्चयनय ओर व्यवहारनय वे आधार पर इस प्रश्न का समा धान प्रस्तत करिया। एक प्रसिद्ध गाथा हे निर्यक्तिं साहित्य मे आचार्य अमतचद्र ने समयसार वी टीका में भी उसे उदन छि किया टै - जइ जिणमय पवज्जह, मा ववहारणि च्छय मुयह। ववहारस्य उच्छेये. तिन्थच्छेवो हवडं वस्स।। यदि तम वीतराग का मार्ग अपनाना चाहते हो, जिनमार्गं अपनाना चाहते हो, अध्यात्म का मार्गं अपनाना चाहने हो तो निश्चय ओर व्यवहार -दोनो मे से किसी को मत छोड़ो । यदि निश्चय चला गया तो सचाई चली जाएगी। यदि व्यवहार चला गया तो तीर्थ चला जाएगा। व्यवहार के बिना तीर्थ, शासन या सगठन नहीं चलता। निश्चय के बिना सचाई नहीं मिलती। सचाई को जानने के लिए निश्चय बहुत जरूरी है। वास्तविकता तक पहुंचना, अध्यात्म मे पहुंचना, मूल वस्तु तक जाना और भीतर तक जाना निश्चय के बिना सभव नहीं है। व्यवहार को चलाने के लिए तीर्थ और शासन को चलाने के लिए व्यवहार जरूरी है । केवल निश्चय के आधार पर कोई शासन नहीं चल सकता। अकेला व्यक्ति सत्य की खोज कर सकता है किन्तु बह दूसरों को साथ लेकर चल नहीं सकता। व्यवहार और निश्चय - ये दो आखे हैं। दोनो से देखना ही पूर्ण देखना है।




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