खरे-खोटे | Khare-Khote

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Khare-Khote by आरिगपूडि - Arigpudi

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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परो | १५ लपमग चीरु-दककीर्‌ की थौ) मामा कै कटने-सुनने धर वहो श्वर राव जी पन्द्रह-्यीस हजार का ददेज देना मी यान गर्‌ ये | जब यदद उनकी बदन को बताया गया तो वे श्राँदू यदाने लगीं | पुरानी बातें उन्हें याद श्राती जाती थीं । उनके दहे सपनों के देर में से श्रय एक टूटा-कूदा कपड़ा उठ रहा था । न वे ठीक तरदरो दी पाती थीं, न सन्तुप्ट ही हो पाती थीं । सुजाता पर तो कड़ा प्रा लगा दिया गया | ॥ शहनाइयां बज रही थीं | मामा त्तनकर सड़े दो गये। सामने से एकः लाल शाल के नीचे, दृह कै पितरा, पांच-दसं स्त्रियो श्रीर दो-चार सम्पन्पी श्रा रहे थे । शादी से पहले कोई रस्म श्रदा की जा रही थी ! यराती पिछले दिन दी काटूर में श्रागये थे । वे मामा के किसी रिश्तेदार के घर ठदराये गये थे | यराती ब्रह्म शवर राच जी को श्रलग से जाकर याततें करने लगे । उन्दोंने मामा की तरफ नजर उठाकर भी न देखा । मामा उनकी श्रोर तिरी नजर से देख रहे थे। दाल में कुछ काला नजर श्राता था, क्योंकि तय तक सारी बातचीत उनके श्रीर उनके भाई के द्वारा हुई थी | स्रातें जद जोर-जोर से होने लगों तो नरसिंद मामा भी उनके पास खड़े हो गये | “पमले ही झाज इम गरीब हों, पर हमारे खानदान की भी मान- मर्यादा है” दूल्दे के पिता कद रदे थे श्रीर मामा कान लगाकर सुन रहे थे । “लेन-देन के बारे में हम ब्रहुत पके हैं, नकद का हिसाथ है | सासा-का-सारा दहेज, वीस हजार शादी के समय सबके सामने देना दोगा ।” कहते-कदते वे इधर-उधर देखने लगे । मामा पैसे के बारे मैं उनकी चिन्ता समझ सकते थे । दो लड़कियाँ थीं, शादी की उम्र दो चुकी थी श्रीर बिना दषेन दिये उनकी शादी की नहीं जा सकती थी । इसी देन से वे उनकी शादी करना चाहते थे । लड़के को श्रामे पढ़ाने-लिखाने की व्यवस्था भी कर रहे ये | मामा




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