ब्रह्मचर्य - व्रत | Brahmcharya Vrat
श्रेणी : जैन धर्म / Jain Dharm
लेखक :
Book Language
हिंदी | Hindi
पुस्तक का साइज :
3.71 MB
कुल पष्ठ :
130
श्रेणी :
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लेखक के बारे में अधिक जानकारी :
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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश
(Click to expand)लाभ ओर मादात्म्य
तके तुया उत्तम बंबचेरं |
है सुगदायंग सृच ।
ब्रह्मचय दी उत्तम -तंप'है। -* +-'
न्रह्मचय से क्या लाभ होता है, और. का केसा
साहात्म्य हे,यह संक्षिप्त में नीचे बताया जाता है ।
आत्मा का ध्येय, संसार के जन्म-मरण से छूट! कर, मोज़:
प्राप्त करना है । इस ध्येय को तभी प्राप्त कर. सकता है
:... जब , उसे शरीर, की सहायता हो--झथोव
की का. स्वस्थ हो ।, शरीर के, धम नहीं दो
_. :सकता, ओर बिना धर्म. के; अपन
उक्त ध्येय तक नहीं पहुँच ,सकता | कान््य अन्थों में कहां :
शरादिमाध खल घम साधनमू ।
का कुमारसम्भव 1.
डारीर ही, सब धर्मों का प्रयेम और उत्तम साधन है ।
| 5. धेमाथ काम मूल मुचगमू ।
घंमे, छोथे; काम और मोक्ष कां, भारोग्य ही साधन है. ।”
2
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