भगवान पार्श्वनाथ | Bhagwan Pasharvanath (purvardha)

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Bhagwan Pasharvanath (purvardha) by कामता प्रसाद जैन - Kamta Prasad Jain

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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कमठ और मरुभूति । [ १३ न त-न जी मनुष्यो विचारो अथवा परिणार्मोका वडा गहरा स्रव उनकी भलाई-बुराईसे लगा हुआ दे । अच्छे विचार होगे, तो परिणाम भी अच्छे होगे और परिणाम अधवा मनके अच्छे होनेपर ही वचन ओर कायं अच्छे हो सकेंगे किन्दु इसके विपरीत बुरे वि- चागे ओर परिणिामोपे बुरे कार्य होगे जिनका फल भी बुरा होगा। इम वेज्ञानिक नियमका ही शिकार विचारा मरुभूति बन गया ' अन्निम स्वाप्में उसने हलाहल विप चख लिया, जिससे वह पहले चौकनना रहता था । अस्त, दूसरी ओर कमठको भी अपने बुरे कार्यका दुष्परिणाम झीघ्र ही चखना पड़ा | तापसियोने उसके इस दिसक कमेसे चिटकर उसे अपने' आश्रमे निकाल वार कर द्विया | वह दुष्ट वहासे निकलकर भीलोमे जाकर मिला ओर चोरी करनेका पेशा उसने गृहण कर लिया | आख़िर इसततरद पापकी पोट बाधकर वह भी मरा और मत्क कुरकुट सर्व हुआ । उसके बुरे विचार और बुरे कार्य उसकी आत्मान पञ्ुयोनिे मी बुरी अवस्थामें ठे गये | नप्ता उपने बोया बसा पाया | सचमुच जीवोको अपने २ कर्माका फल मुगतना ही होता हे । ना मैसी करनी करता है वेसी ही उसकी गति होती है। मरुभूतिने भी आर्वरूप विचारक कारण पञ्युयोनिके दु'खमें अपनेको पटक लिया | क्रोधके आवेशमे सगे भाइयोंमें गहरी दुदमनी पड़ गई, नो जन्म जन्मान्तरोतक न छूटी यह पाठक अगाडी देखेंगे ! अतएव करोधक्रे वयीभृत हकर प्राणियोकों वैर वाघना उचित नही है ।




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