भगवान पार्श्वनाथ | Bhagwan Pasharvanath (purvardha)
श्रेणी : जैन धर्म / Jain Dharm
लेखक :
Book Language
हिंदी | Hindi
पुस्तक का साइज :
7 MB
कुल पष्ठ :
208
श्रेणी :
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लेखक के बारे में अधिक जानकारी :
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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश
(Click to expand)कमठ और मरुभूति । [ १३
न त-न जी
मनुष्यो विचारो अथवा परिणार्मोका वडा गहरा स्रव उनकी
भलाई-बुराईसे लगा हुआ दे । अच्छे विचार होगे, तो परिणाम
भी अच्छे होगे और परिणाम अधवा मनके अच्छे होनेपर ही
वचन ओर कायं अच्छे हो सकेंगे किन्दु इसके विपरीत बुरे वि-
चागे ओर परिणिामोपे बुरे कार्य होगे जिनका फल भी बुरा होगा।
इम वेज्ञानिक नियमका ही शिकार विचारा मरुभूति बन गया '
अन्निम स्वाप्में उसने हलाहल विप चख लिया, जिससे वह पहले
चौकनना रहता था । अस्त,
दूसरी ओर कमठको भी अपने बुरे कार्यका दुष्परिणाम
झीघ्र ही चखना पड़ा |
तापसियोने उसके इस दिसक कमेसे चिटकर उसे अपने'
आश्रमे निकाल वार कर द्विया | वह दुष्ट वहासे निकलकर
भीलोमे जाकर मिला ओर चोरी करनेका पेशा उसने गृहण कर
लिया | आख़िर इसततरद पापकी पोट बाधकर वह भी मरा और
मत्क कुरकुट सर्व हुआ । उसके बुरे विचार और बुरे कार्य उसकी
आत्मान पञ्ुयोनिे मी बुरी अवस्थामें ठे गये | नप्ता उपने
बोया बसा पाया |
सचमुच जीवोको अपने २ कर्माका फल मुगतना ही होता हे ।
ना मैसी करनी करता है वेसी ही उसकी गति होती है। मरुभूतिने
भी आर्वरूप विचारक कारण पञ्युयोनिके दु'खमें अपनेको पटक
लिया | क्रोधके आवेशमे सगे भाइयोंमें गहरी दुदमनी पड़ गई, नो
जन्म जन्मान्तरोतक न छूटी यह पाठक अगाडी देखेंगे ! अतएव
करोधक्रे वयीभृत हकर प्राणियोकों वैर वाघना उचित नही है ।
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