छान्दोग्योपनिषद् | Chhandogyopanishad
लेखक :
Book Language
हिंदी | Hindi
पुस्तक का साइज :
31 MB
कुल पष्ठ :
974
श्रेणी :
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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश
(Click to expand)छान्दोग्योपनिषद् स०। ६
१ - भवाथ । 1
ही नौर पुरूष के संयोग से आनेद् (मिलता हैं; आर
(५ १ कि
मनोगत कामना की सिद्धि होती हे, उसी प्रकार जव बद्
और प्राण मिलते हैं, और कऋचा आर सामवद को संयोग होता
है, और इन दोनों जोड़ियों का संयोग अतिनानर डश्कार से
होता हैं, तत्र उपासक की कामना परणं दोक्षी ह ॥ ६५
गरलम् ।
्रपथिता ह वै कामाना भ्दति यं एत्व
विद्यनक्षरमुद्राथमुपास्तें ॥ ॥ |
पदुच्छद |
पपयिक्ष; ह, वे, कामान) भवति, यः,
एतत्, एवम्, विदान्, अक्षरम्, उदर, उपासते ॥
अन्वयः पदा | अनयः, - पदा
यः-जा | सः=वृह
विहान्-विदानपुरूष + विदह्यान्=विद्धन.
एतत्-इस `: | पुरुष
ब्क्षरमनअधिनाशी ` वै=अवश्य
उद्रीधम् कारका |+ यजमानस्य=यजमानके
एवम्-दसप्रकारं कामानाम्-ननोस्थका
ह=तिश्चधके |. ्रापयिता=पखकरने `
साथ बाला
उपास्ते-सेवनकरता ` भवति =हेताद
भावाथ ।
विद्वान् परंष-करे हये धकार उन्कार क सेवन करता है,
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