नागार्जुन चुनी हुई रचनाएँ 1 | Nagarjun Chuni Huye Rachnayen - 1

Nagarjun Chuni Huye Rachnayen - 1 by नागार्जुन - Nagaarjun

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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लेकिन यह बात फिर भी कही जा सकती है कि नारी पात़ों की सृष्टि और विकास को लेकर नागाजून अतिरिक्त सजग हैं। स्पष्ट कहूँ कि उनके प्रति उनके मन में खास मोह है अब इसके कारण जो हों । उनसे ज्यादा कौन इस बात को देख पाया होगा कि भारतीय समाज में नारी दोहरे शोषण की शिकार है । एक तो उन्होंने कुटिल नारियों की सुष्टि की ही नहीं और अगर करनी भी पड़ी तो उनके विकास में जबरदस्त उलट-फेर उन्होंने कर दिखाया है। मसलन कुम्भीपाक में लड़कियों के व्यापार में शामिल जिस बुआ के चरित्र को उन्होंने उठाया अन्त तक जाते-जाते वही बुआ एक परिवर्तित नारी के रूप में सामने आती है जो स्त्रियों की दुदंशा के प्रति पूर्ण सजग ही नहीं उनकी बेहतरी के लिए अपना जीवन अपित करना चाहती है। यह नारी रतिनाथ की चाची हो या उसकी माँ वरुण के बेटे की मघुरी हो या उसकी माँ कुम्भीपाक की उम्मी को माँ हो या निर्मला और रंजना--सभी मानवीय गुणों से भरपूर हैं । ऐसा नहीं है कि नागाजुन अफरोए वर्गों की इतराती-इठलाती स्त्रियों से परिचित नहीं या उन पर फब्तियाँ नहीं कसते लेकिन विशाल जनता के जिस जीवन को उन्होने अपनी रचना केन्द्र में रखा है वहाँ उनका साक्षात्कार ऐसी ही स्त्रियों से हुआ है जो अपनी प्रकृति से द्वी मनुष्यता के सर्वोच्च गुणों से विभ्रूषित है और दिलेर धनिया की परम्परा को आगे बढ़ा रही हैं। उनवे अधिक उपन्यामों में नारी के इसी रूप से हमारा साक्षात्कार होता है । फिर भी यह आश्चयं की बात है कि नागार्जुन अपने इन उपन्यासों में प्रम और रोमांस की कोई बेल नहीं बढ़ाते । थोड़ी बहुत चर्चा चली अवद्य है कह्ी-कही । जैसे रतिनाथ वी चानी में रत्ती और बागों का प्रेम और वरुण के बेटे में मंगल और मधघुरी का प्रेम पर इतना ही कि कहीं आते-जाते भाँख लड़ गई एकास्त में पेड़ तले कुछ मान-मनुहार हो गई । इरासे ज्यादा कुछ नहीं । गाँव से परिचित कोई भी व्यक्ति इस बात को जानता है कि एक ही गाँव के लड़के-लड़की का प्रेम किस सीमा नक जा सकना है । यहाँ शहरी मध्यवर्म के प्रेम और रोमांस की अनस्त सम्भावनाएं नहीं । यह्ाँ प्रेम के दूसरे परम्परित रूप ही अधिक महत्त्वपूर्ण हैं । वह प्रेम जो माँ और बच्चो में होता है पति और पत्नी में होता है भाई और बहिन में होता है । नागार्जुन ने इन सम्बन्धों को जतन से रचा है । ऐसे प्रसंगों की सुच्टि नागार्जुन पुरी मारभिकता से करते हैं । उन्होने प्रेंम की मर्यादाओं को निभाते हुए उसे टंडलजेस में नहीं बदलने दिया है । द मतलब यह कि एक साधारण पाठक या महान प्रतिमानों में फंगा आलोचक सइपन्यास से जो चाहता है वह इन उपन्यासों में नहीं मिलेगा । फिर भी खूब अच्छी तरह जानते हैं नागार्जन कि कहाँ किस बात को किस तरह रखना है और कितना तूल देना है । जैसे उनके हर उपन्यास की कहानी बहुत ही साधारण तरीके से शुरू हो जाती है। बलचनमा आया और अपनी कहानी कहनी शुरू कर दी । न कोई ताम-झाम न नौटंती न दिल हिला देने वाला ट्रेलर । लेकिन यह सहजता बड़े जतन से पंदा की गई है। बाप मरा दो आम तोड़ लाने की सज्ञा के जुर्म में । जिसने १४ / नागार्जुन चुनी हुई रचनाएं- १




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