सप्ततिकाप्रकरण | Sapattika Prakaran

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Sapattika Prakaran  by फूलचंद्र सिध्दान्तशास्त्री - Fulchandra Sidhdant Shastri

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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प्रस्तावना १५ १ नाम | परिमाण । कर्ता रचनााल भन्तर्भाप्य गाज! गा० १० ¦ मज्ञा अज्ञात ९ भाष्य ` गामा १९१ ' अभयदेव सूरि वि.११-१२वीश. सर्णि ¦ एव्र १३२ अज्ञात अज्ञात \ सणि ¦ इरो० २३०० ¦ चन्द्रि महत्तर | अनु° जवी श | यत्ति : ,, ३७८०. सख्यगिरि सूरि वि. १२-१३वीं दा, । साप्यवृत्ति ¦ ,, ४१५० ¦ सेस्तुंग ष्रि | बिसं. १४४९ | टिप्यन ` , चज्य | रामदेव | तरि.१२ वीः. भबन्ुरि , देखो गव्य कमं | गुणरल्न प्रि । वि, पवी शा, | ्रन्यद्धी अवर | ः 9 । नमेते १ भन्तर्भाष्य गाथा, २ चन्द्रपि महत्तस्छी द्रूणि तौर रे मछयगिरि सूरिकी बृूत्ति इन तीनका परिचय कराया जाता है | अन्तर्भाष्य गाथाएँ -सप्ततिकामे अन्तर्माप्य गाधाएँ कुल दूस हैं । ये चिविध विषयोंका खुलासा करनेके लिये रची गईं हैं। इनकी रचना किसने की इसका निश्चय करना कठिन है । सम्भव है प्रस्तुत सप्तदिकाके संकरुथिताने ही इनक रचना की हो । खास खास प्रकरण पर कपाय- आतम भौ भाप्यगाथा पाई जाती है ओर उनके रचयिता स्दयं कपाय- भाश्छृतकार हैँ । बहुत संभव है इसी पद्धतिका यहाँ भी श्रनुसरण किया गया (१) इसका उल्लेख जैन ग्रन्थावलिमें मुद्रित बृदट्टिप्पतिकाके श्राधघारसे दिया दै । , ` (२ इषका परिमाण २३०० इलोक श्रघिक ज्ञात दोता दै! यद सुक्ताबाई ज्ञानमन्दिर ड भोईसे प्रकाशित हो चुकी है |




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