नई तालीम वॉल-12 वर्ष -12 अंक - 1 | Nai Talim vol-12 Varsh-12 Ank-1

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Nai Talim vol-12 Varsh-12 Ank-1 by धीरेन्द्र मजूमदार - Dhirendra Majumdar

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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स्यत हैं । उन पर याइससारों का परायों का, परदे शियों का अधवा देशवासियों का भी फोई बोझ नहीं है, और न उन पर फ्सि का काई जोर और जुर्म अप चलनेवाठा दे । यदि इस प्राथमिक मदत्य के अयन्त आवश्यक ओर जनियायं कायं के लिए, इतने वर्षों के बाद मी सारे देश में कोई सुसगठित ओर सुनियाजित प्रयत्न जरम्म नहीं फियां गया तो देश वे करोड़ों लोगों में नयी स्वत जता के लिए कोई सास उत्साइ, दि वास और श्रद्धा नहीं नाग पायगा | परिणाम यह होगा कि सथ निर्माण और विकास के सारे काम ऊपर ऊपर चलते रहेंगे, गहराई तक नहीं पहुँच पायेंगे और देश के छोव जावन का मूल घास को प्ररित और प्रभावित भी नहीं कर सकेंगे अतएय व्यापक और दिशिए प्रकार का लोक शिक्षण आज का दमसारा विशेष आवश्यकता दे । हम नम्रता पूरक यह स्व फार फर लेना होगा कि भाज अपने इस देश में शिक्षा के जो भा प्रयोग दो रहे हैं, च आम लोगों को न. तो छूपाते हें और न उडें दि हो पाति हैं। रोगों को आपयी. घुफ्यिदा जहरतें भा पूरा करने मे इन प्रयतों से कोई मन्द नहीं मिर रद है । देश थे करोड़ों लोग आज भी-सत प्रकार का शिक्षा से पचित रद रहे हैं उद पपपी शिया मिड प। रह है ने सपना । उनक पास दिक्षा और सस्कार का सही परिचार पहुचाने म भा हम अ तफ शसमंध दो रहें । हमारी अर तकर साराप्रिष-न्ताओं यौर निगाशाओं के मूल में हमारे समा चया शावन की यह असम ता पड़ा दे । दम शिद्ा किसे कद ? इष प्रम मे पद> देने यह साच 1फ आज क उपने स दम म॑ हम शि६ पिति कट्‌ {यज इख दे ख प्रायमिक से उच्चतम प्चान्पो, महा पिय न्यो ओर्‌ पिश्वपिचान्यो भें पदक लोयो को जिस प्रकार का शिक्षा दा जा र्हा इ, खष्हौ उम. यह साप्य पदों दे हि ददद आज क इमारे शिक्षित पामघारा भाई बहतों का स्स्वय भारत का ९४ 1 मुवोग्य,समथं,और उदूढ नागरिक बा सके । अपनी स्वव ताक दव सोने वपं ममी आज ष्टम अपने देश में हर तरह के युरासा,लाचारी,सुँदताजी,वेकारी और कमजोरी का पोषण करने वाशी दिक्षा ही दे-ले रद हैं। आज की इस शिक्षा को इसी तरह चला वर अगर हम आशा करें कि इसे प्राप्त करके पिकले हुए; लोग देश फी और मानवता की उत्तम से उत्तम सेवा करने वाले पननेंगे तो हमारे नमन पिचार से वह आशा कभी फडयता होगी ही नहीं हम यह स्पष्ट समझ लेना होगा, और ठुरत इस यात का पीसला फरना होगा कि यहीं शिक्ष , शिक्षित व्यक्ि को रेल नौरुरी चरने लायर धनाने का लश्य रखकर चलेगा तो फिसी भी दा में बह हमारे राष्ट्र ज वन की आत यी मुन्भूत आदरश्मरतानों को पूरा नहीं कर सपगो | एक नौफरी का दा विचार शिक्षा व शेम में प्रबल बनी रददा तो वदद उस क्षेत्र को और शिक्षि ब्यवित को भा सता दूत और दुर्येछ हा बनाता रहेगा । आन के इस मय स दर्भ में दम जरा प छ मुझे पर देखना दोगा और हजारों वच पदले हमारे पूथ॑त ज्ञ 1 पिशान क प्राप्ति फ लिए अपन सामने जी ल्य स्पत थे, उन ल्थपों का सुन ध्यान मे लगा होगा और दश म ६ जगह उनके अतुरूप शिक्षा दीक्षा की न्यस्या जमा दोगी। इष देशम यदत पुराने समय से विद्या को मुक्ति का साधन और अमरता का वाहन माना गया है। 'साविद्या था निमुक्त । और विव्यया सुतमनुत' इन दा प्रसिद्ध जार पराच) 7 वचनो मजो महान जादूश अस्त है उसे स्तत अपने ध्यान मँ स्मषरदेदा की मया पढ़ा की समूची शिखा दीक्षा का व्यवस्थित सपाजय करक दा इम पूर देवा मे नये जायपन-मूहयों से आते प्रोत नयी मानता चर नया पार्गारफता के सुनस दर्सन कर सकेंगे । इसका अथ यद नददीं कि आज १ इस युगम स्मे आधुनिक कषान {क्तात फास म्ानोस दूर बने रद्नाहे जयया उत्ते आ मसाद रन सं कसा प्रकार कः खकर्णेता या सकोच स काम लना है। [ नयो त छीम




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