जामनगर के व्याख्यान | Jaamnagar Ke Vyakhyan
लेखक :
Book Language
हिंदी | Hindi
पुस्तक का साइज :
6 MB
कुल पष्ठ :
212
श्रेणी :
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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश
(Click to expand)(7) 2उ/जाग्नगर के व्याख्यान
को प्रकृति के विरुद्ध ओर अपवित्र दवाइयां खाने कां अवसर
ही न अवे |
मतलब यहः है कि क्रियाजनित संस्कार किस प्रकार
आत्मा को शुभाशुभ फल देता हे, इस बात की खोज वनस्पति
के आधार पर की जा. सकती है । इसके लिए वटवृृक्ष को
देखिये । वटवृक्ष हवा-पानी आदि के संयोग से अपना विस्तार
, करता है । उसकी डालियों ओर पत्तों का फलाव होता हे
ओर उनमें फल लगते है. वट की इस प्रकट क्रिया के साथ
ही साथ उसमें एक गुप्त क्रिया भी होती रहती है । उसी गुप्त
क्रिया के आघार पर यह विचार किया जा सकता है कि
शुभ-अशुभ क्रियाओं से उत्पन्न होने वाले संस्कार किस प्रकार
आत्मा को फल प्रदान करते हैं ? .
बड़ के फल में छोटे-छोटे बीज होते हैं | उन बीजों
में बड़ अपना सरीखा वृक्ष भर देता है । फल या बीज में अगर
बड़-वृक्ष को देखने का प्रयत्न किया जाये तो दिखाई नहीं
देता, मगर बुद्धि द्वारा संमझा जा सकता है कि बीज में सम्पूर्ण
वृक्ष छिपा हुआ है | छोटे से बीज में अगर वृक्ष न छिपा होता
तो पृथ्वी,- पानी, ताप आदि का अनुकूल संयोग मिलने पर वह `
कैसे प्रकट हो सकता था ? आशय यह है कि वट-वृक्ष के
संस्कार जैसे उसके बीज में मौजूद रहते हैं उसी प्रकार
आत्मा द्वारा की हुई क्रियाओं के संस्कार आत्मा में मौजूद
रहते हैं और वे संस्कार क्रिया के नष्ट हो जाने पर भी आत्मा
को शुभ या अशुभ फल प्रदान करते हें |
पानी बरसने से पहले, जंगल में जब हरियाली नहीं
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