नारी जीवन | Nari Jivan
लेखक :
Book Language
हिंदी | Hindi
पुस्तक का साइज :
8 MB
कुल पष्ठ :
332
श्रेणी :
हमें इस पुस्तक की श्रेणी ज्ञात नहीं है |आप कमेन्ट में श्रेणी सुझा सकते हैं |
यदि इस पुस्तक की जानकारी में कोई त्रुटि है या फिर आपको इस पुस्तक से सम्बंधित कोई भी सुझाव अथवा शिकायत है तो उसे यहाँ दर्ज कर सकते हैं
लेखक के बारे में अधिक जानकारी :
पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश
(Click to expand)दाम्पत्य 1 [ १२६
ठाकुर की वातें सुनकर ठकुरानी सोचने लगी-ये तो सारी
वातें मुझ पर ही घटित होती है । फिर भी उसने कहा-चलो, मेरे
भाग्य झच्छे थे, जो पाप उस नाग से बचकर श्रागए ॥
ठाकुर--ठकुरानी ! समभो । मैं उस नाग से बच निकला
पर तुम सरीखो नागिन से वच निकलना बहुत कठिन है ।
ठकुरानी--दया मैं नागिन हू ? श्वरे बाप रे ! मैं नागिन हो
गई ? भगवान् जानता है । सब देव जानते हैं । मैंने कया किया
जो मु नागिन बनाते हैं ।
ठाकुर--मैं नहीं बनाता, तुम स्वय वन रही हो ! मैं श्रपने
मित्रो के सामने तुम्हारी तारीफ वघारता था,लेकिन सब व्यर्थे हृश्रा।
ठकुरानी--तो बताते क्यो नही, मैंने ऐसा क्या किया है ?
मैं श्रापके विना जी नहीं सकती शभ्रौर श्राप मुझे लाछन लगा रहे हैं ।
ठाक्र--चस रहने दो । म श्रव वह नही, जो तुम्हारी सीठी-
मीठी बातो में प्रा जाक । तुम मुक्त मे कहा करती. थी-तुम्ह्वारे
वियोग मे मुभे खाना नही माता श्रौर रात भर खाने का कचूमर
निकाल दिया !
ठकूरानी कौ पोल खुल गई । सारांश यह कि ससार में इस
ठकूरानी के समान पतिसे कपट करने वाली स्त्रिया भी हैं श्रौर
पतिब्रताए भीर । पत्ति कफे प्रति निष्कपट भाव से श्रनन्य प्रम
रखने वाली स्त्रियां भी मिल सकती हैं श्रौर मायाविनी भी मिल
सकती हैं । ससार में भ्रच्छाई भी है श्रौर बुराई मी है । प्रश्न यह
है कि स्त्रो को क्था ग्रहण करना चाहिये ? किसको भ्रपनाने से
नारी-जीवन उन्नत भौर पवित्र बन सकता है ?
User Reviews
No Reviews | Add Yours...