भारतीय नागरिक | Bhartiya Nagrik

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Bhartiya Nagrik by भगवानदास केला - Bhagwandas Kela

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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` आरतीयं नागरिक [ ७ भारतवासियो की भिक्षाया दानादि देने की रीति भी ` बहुत विचारणीय ओर सदोधनीय हे । यहां भिखारियों के ` वक्मान अक ठीक दीक नहीं मिलते, तथापि अनुमान से उनकी संख्या पचास साठ लाख होगी; इनके अतिरिक्त यहां बहुत से अन्य आदमियों की भी आजीविका दान-दश्चिणा आदि ही है। वास्तव में यहां दानशीठता का यथेष्ठ सद॒ुपयोग बहुत कम होता है । लोगों का परावलम्बी होना ( मुफ्त की रोरी खाना ), तथा उनके ऐसा होने में सहायता करना, . दोनों बाते अनिष्टकारी है । इसमें कमः संधार होरहा है । उद्योग धन्घे--भारतवष मं अधिकांश आद्मियो का सख्य धन्धा खेती है। यहां तेस करोड आदमी कपि, उथान, पञ्च पाटन, ओर खणिज द्भ्य निकालने आदि से होने वाी आय पर आधित रहते दँ । दस्तक्रारी का आधार साढे तीन करोड़ आद्मियों को, ओर व्यापारका, दो करोड को हे । रेष आदमी नोकरी आदि भिन्न भिन्न कार्यं करते हः । ' कुछ ऐसे भी हैं जो कोई उत्पादक कार्य नहीं करते, भिश्चा - आदि पर निर्भर रहते हैं; इनके विषय में पहले कहा जा चुका है। ` : आसित आय-मि° डिण्वी ने सन्‌ १९०१ ईं०. _ भारतीयों. की औसत सालाना आमदनी १८ ० ९ अने सिद्ध की थी । ठाडे कज़न की सरकारी जांच, से. उसके समय च




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