मनुष्य का धर्मं | Manushya Ka Dharm
लेखक :
Book Language
हिंदी | Hindi
पुस्तक का साइज :
12 MB
कुल पष्ठ :
89
श्रेणी :
हमें इस पुस्तक की श्रेणी ज्ञात नहीं है |आप कमेन्ट में श्रेणी सुझा सकते हैं |
यदि इस पुस्तक की जानकारी में कोई त्रुटि है या फिर आपको इस पुस्तक से सम्बंधित कोई भी सुझाव अथवा शिकायत है तो उसे यहाँ दर्ज कर सकते हैं
लेखकों के बारे में अधिक जानकारी :
रघुराज गुप्त - Raghuraj Gupt
No Information available about रघुराज गुप्त - Raghuraj Gupt
रवीन्द्रनाथ टैगोर - Ravindranath Tagore
No Information available about रवीन्द्रनाथ टैगोर - Ravindranath Tagore
पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश
(Click to expand)१
बाहरकी दिशामें निरन्तर वह चला, उसके भीतर उसका अपना
ग्रथन था) घरपर भ्रा पहुँचा, वहाँ प्रथं पाया गया, भीतरकी
लीला श्रारम्भ हुई । मनुष्यमें सृष्टि व्यापार श्रा पहुंचा, कमेविधिका
परिवर्तन घटा, भ्रन्तरकी श्रोर उसकी धारा बही । श्रभिव्यक्ति हुई
थी प्रधानतः प्राणियोकी देहूको लेकर, मनुष्यमें प्राकर उस प्रक्रियाकी
समस्त सोक मनकी ग्रोर पड़ी । पहलेसे एक विराट पाथक्य
देखा गया 1 देह-देहमें जीव स्वतन्त्र ह ; पृथक भावसे त्रपनी देह
रक्षाम प्रवृत्त है, उसीको लेकर प्रबल प्रतियोगिता ह 1 मन मनमं
वह् अ्रपना मेल पाती है एवं मेल चाहती हं। मेल न पानेसे वह्
ग्रकृताथं है । सहयोगमे उसकी सफलता है। वह समझ सकता है,
बहूतोके बीच वह् एक है ; जानता है, विर्वमानवमन उसके मनकी
जानकारीकी जाँच करता है, प्रमाणित करता ह, तभी उसका मूल्य
है। देखता है, ज्ञान, कमं, भावमें जितना ही वह् सबोके साथ युक्त
होता है, उतना ही वहु सत्य होता हं योगकी यहु पूणता लेकरदही
मन्ष्यकी सभ्यता है! इसीलिये मनुष्यका वही प्रका श्रेष्ठ है जो कि
एकान्त व्यक्तिगत मनका नहीं है, जिसे समस्त कालोके समस्त मनुष्योकि
मन स्वीकार कर सकते हं । बुद्धिकी बबंरता उसीको कहते हें जो
ऐसे मत ऐसे कर्मकी सृष्टि करती है, जिससे वृहतकालमें सर्वेजनीन
सन स्वयं सहमत नहीं हयो पाता इसी सवेजनीन मनकी उत्तरोत्तर
विदयुद्धकर उपलब्धि करनेमें ही मनुष्यकी भ्रभिव्यक्तिका उत्कषं ह |
मन॒ष्य अपनी उन्नतिके साथ-साथ व्यवितिसीमाको पारकर वृहत् मनुष्य
हो उठता है, उसकी समस्त श्रेष्ठ साधना इसी वृह मनुष्यकी साधना
है। यदी वृहत् मनुष्य ग्रन्तरका मनुष्य ह । बाहर नाना देशोकी, नाना
समाजोकी नाना जातिर्यां हः किन्तु भ्रन्तरमं केवल एक मानव
User Reviews
No Reviews | Add Yours...