तत्त्वार्थवार्तिकम | Tattwarthavartikam

55/10 Ratings. 1 Review(s) अपना Review जोड़ें |
Book Image : तत्त्वार्थवार्तिकम  - Tattwarthavartikam

लेखक के बारे में अधिक जानकारी :

No Information available about महेन्द्रकुमार जैन - Mahendrakumar Jain

Add Infomation AboutMahendrakumar Jain

पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

(Click to expand)
2 दिन 4 हु न (7 म ५। ् “4 र्‌ ध टाई द्वोपम दर उसके कहर पयं न चन्द्र श्रादि £ तने हे दस सम्बन्धी अन्य श्रावश्यक जानक्रारी २२० ञ्योततिषियांकी गतिषे दिनरात श्रादि २२० उवह र कारकः कथन २२१ मुख्य कालकी सिद्धि २२२ ग्रस्तिकायोप कालके स्वीकार न करने का कारण ` ५ मनुष्यलोकके बाहर उयोतिधियोंकी प्रवस्थिति २२२ चतुथं निकायका नाम निर्देश २२१ वेमानिक शब्दका श्रथ तथा विमानों के भेद . २२२ वैमानिक देवोंके सेद २२३ वैमानिक देवोफे निवाश्स्थान . ऊपर हैं २२३ वेमानिक दैवोके सौधम श्रादि स्थानों | | फैनाम २२३ सौधम श्रादि शब्दोकी कल्प संज्ञका कारण १२९४ सवौथसिद्धि शब्दको प्रथक्‌ अ्रहण करने का कारण ५५ भ्रेवेयक श्रादिको प्रथक्‌ अहण करनेका कारण २२४ नव पदको प्रथक्‌ श्रहण करनेका कारण २२४ उपयुपरि पदके साथ ददो कल्पौ का सम्बन्धदहै सील कल्पौमे इन्द्र विचार '्रानतप्राणुतयों! * व 'ब्ारणाच्युतयोः' पदीकी पथक्‌ रखनेका कर्ण २२५ २२५ सौमं श्रादि स्वगि स्थान, विमान प्रसा देव परिषद्‌ तथा देव ताश्रोकी श्राय श्रादिका विस्तृत * वषम _ स्थिति प्रभाव आदिसे उत्तरोत्तर देवों सहन: की विशेषता. .......... .. शेप . स्थिति श्रादि शब्दोका श्रथ २३५ देवॉंकी गति झादि आगे आगे हीन दै २३६ ४ गति यादि श्दोका पौवापय विचार २३६ ४११ के श्रा खब्दक्ि श्रय थे ण्प ४०८ ५०९ ४०९ ४०६९. = ~ ~ --- ज = ४८०६ ४८५०६ | घ्रह्मलोकसे लेकर अच्युत पयंस्त देवों. दर्यीक उत्तरोत्तर श्मिमान दहीनतापं | सोध्रमं श्रादि क्षोमं लेश्याका कथन २३७ । पाठान्तर निर्देश २३८ . निर्देश, वर्ण श्रौर परिणाम प्रादि दर लेश्याका सिद्ध २ मेवेयकसे पदद्ेततक कर्प सं ताका कथन ` २४१ हद निकाय श्रौर सात रिकाय देवोका चार निकाय देवोत श्रन्तमाघ हो जाता है २४२ लोकान्तिक देवोका स्थान २४२ लोकान्तिक शबष्दका श्रं ४२ लौकान्तिक देवो मेद्‌ (चः शब्दके सारस्वत तथा श्रादित्य छ्ादिके मध्यवर्ती देवॉंके नाम प्रोर विस्तारपूर्वक उनका वर्शन २४३ विजय श्रादि विमानोंमें द्विचरसत्वका कथन द्विचरम शब्दका श्रथ व॒ शंका समाधान , | २.४४ प्रथविरोधका परिरं २.४४ श्रो पपादिक मनुष्योते इतर तिर्थच्च हैँ | इषकाकथन २४५ पूचस्थ शेष” पदका स्पष्टीकरण २४५ तिर्यग्योनिं शब्दका श्रथ. २४५ तिर्यञ्च सर्वलोक निवास कसते दै इस्काक्थन = २४५ भवनवासि्योको उच्क्रष्ट स्थितिका वर्णन २४६. सोघम और ऐदान देवोंकी उत्कृष्ट स्थिति श्रधिकेः पदका शध्याहार सहार तक होता हे २४६ सानक्छुमार तथा माहेन्द्र कद्पक़े देवों को उत्कृष्ट स्थिति २४8 की उच्छृ स्थितिका वणन २४७ ० | सूम श्रये हुए ष्ठुः शब्द्की साथकता २४७ ` ० | श्रच्युतसे ऊपरके विमानोकी उच्छृ ध ऋ ८ न्ट को श हे इक 4 कै क क्त ७१५६ ४१५ १५६ ८१५ १६ ४१६ ४१६ १७ ` ४१७ ५१७ | ४१७ (1 ७१७ कट ५१७ (४१० ४१८ | र 1 २४७ 9;




User Reviews

No Reviews | Add Yours...

Only Logged in Users Can Post Reviews, Login Now