मुहावरा-मीमांसा | Muhawra-Mimansa
श्रेणी : साहित्य / Literature
लेखक :
Book Language
हिंदी | Hindi
पुस्तक का साइज :
12 MB
कुल पष्ठ :
491
श्रेणी :
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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश
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विद विश्लेषण करसे हा मुम आइश दिया। रस और मेरी प्रानि तो थी है, अब प्रेस
और याद भा दो यद और सन् १८४० के आते आते काफो ब्यवस्यित्त रूप से मेरा काम चल पढ़ा ।
उद्देश्य बहुत दो बम एस दया होगे, तो तुरत रस चात से सद्टमत न हो जायें फि बुद्धि
और शान के छेत्र में सगद्त समार का श्रपूवं फोप सद्दानू पा्वों से दो ।यरप रूप से सचित श्रीर
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दूसरी पाटी तड़ श्रार्दनि प्रदान दुआ करता दे। में श्रपन रस प्र में रसस सर्वथा भिगन दृष्टि
कोण पारकों के सामने रखकर श्पन इस क्यन की सयता को सममतर के लिए उद प्रेरित
करूंगा कि सैसा प्राय श्रपिरीश लोग सोचत श्रीर ममकते द. कंबल पु्तरों अथवा उनमें
सम्बध रसनिवाले मौखिक वत्तस्यों म हां नहीं वरन् स्वतय रूप से व्यक्त दाद और बाक्यांशी
( सुद्दावरों ) मं भी बढुधा राजेनातिक सामाजिक श्रोरण्तदाप्िक ता धाथिर एवं सास्क्तिप
सर्यो क॑ श्रमोम सागर गागर मं भर पड रहर आदम यं ब्यावदारिक श्राव्या श्रीर्
सोजों के लगे जोगे स तो बडी ्वपिक ताभदायर श्रीर पत्याणशारी उसके विचारों आद्शों
शरीर श्रनुभूति-तैनों रा ब्योरा दो दै । कोइ भी इतिहास रतना मददत्तपुण श्रीर मनोददार! नहीं होता
चितना मानव स्वभाव श्रौर उसरी मनोदत्तियों फा होता दै। सुद्दाबरों के श्रष्ययन से हर्म भले
दी वद सद्दायर प्रणाली-मात्र क्यों न दो एक ऐसा पथ मिल पाता है जो इस इतिहास वी स्पष्ट
व्याप्या करने श्रीर उसे बुद्ध श्रीर श्रपिक साफ तीर से सालकर रखम क॑ हमार उद्देश्य थी पूर्ति
भे एक वद्धा मद्वपृणं स्थान रखता है। सनंप म॑ मुरावरों को ये पिसी भी भापा के क्यों न हों,
१ रुम्वयू काई पु २९१
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