तत्त्वार्थवृत्ति: | Tattvarthvrati

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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सम्पादकीय ज्ञानपीठ मृनिदवौ जन ग्रन्धमारामं जकरटृकीय प रमयत सम्पादन संधाधनक सा थे टी दूसरा काय चालू हू -तत्वाधसुत्रकी अमुद्रित टीज़ाओंका प्रकाशन । इसी कार्य क्रममे श्रुतसागरसुि विरन्तित लस्वाधबति यागदववरिरचित नत्वाथमुखत्रोधवनि जीर प्रमानन्दकन तल्यायवनिटिप्पणवा गंपाद्न-गयोधन हा तूर । नत्याथवानिक्कानीन नाइपत्रीय तथा सीन सागजकी प्रतियति साधारम्‌ सम्पादन; र्हा है । वर बड़े ग्रन्थोका अप रानयाद जितना ससस आर दाफिवि टना > उतनी उसकी उपयोगिता सिद्ध नहीं होती । कारण, संस्तुलाध्यासी लो मदयन्थस ही परदोवोध कर ले है ओर भपिर्यिसीक स्यि म्ना नुवादका कोई विशिट उपयोग नहीं दे , जले बह य्घाता पतन्णवार हिन्दी सार लिखा जाना व्यव समकर नन्वाववत्ति ग्रल्यका, जा पश्गिणमे लत सलार ते संकपम हिन्दी सार न्विता त । टमम नस्वाधसनन परे धनसागर्सुण्यिय जा विवेसन है बट पुरा संगदीत है । 0 न 9 ४ ॥ ० दिगम्यर वाइमसक रद संपादनम सारपबीस प्रतियां चटेमस्य सिद्ध हु ८ । न्यायतमुदयन्दे आर न्य वविनिद्वय विवरण सम्पादनम्‌ ताडपत्रीय प्रवि] ता पायद्धि आर गलाद्नका मस्म साधन रह +| न ध द्मा तरर तल्याथतानिकत ज्तेद्धपृत्ज मम्कररणका यद्ध सम्पादन भा दरल्निणको तादपत्रीय प्रतिप्रागदी सा है । रस नन्वाधवततिक सम्पादनग बसारेस, जरा आर दिल्‍्दीकी पाली ने कगजवत प्रतियोका उपयोग सो सारी रयाद्‌ पर जा विष्य प्रति हमें मिली आर जिसके जाघारस यद्र संस्पारण शुद्ध सम्पादित हुआ, यह है मड़बिद्रीकी लाइपमीस प्रति । शारा जन सिद्धा भवन प्रात हुई प्रतिकी जाल सजा है । प्रास: अधद्ध हैं । घनारस स्यादाद विदारयन्‌ प्राप्त हई प्रतिकी बल्सजा है। यह भी अला: दिनीवको प्रति थी फबावावजी अग्रवा उकी लपार घारत कई है । सकी जा देन हे 1 या अपना - जन मन्दिर बनाससकी प्रतिकी संज्ञा जल है। सार प्राचीन आर दाद्ध है । मदबिद्री जन सठकी लाइ़पबीय प्रतिकी संज्ञा लाल हं है सह सनी लिपि में लिखी हुई है और दाद र। उस तर्ट पंच प्रतियोक जाघारण सका सम्पादन फिया गया टू ग्रन्थाननरान उदघत बाकयकि मलर्थल निदेश ^| | | डम ब्रविमि कर दि्ा्े। वृद अधवाधक टिप्पण सम्पादक द्वारा लिखें गए है । तादटूपत्रीय प्रतिमे भीक की टिप्पपर उषटव्यट्रूणर उन्हें ताज दिल्‍्के साथ छपाया हैं | उस ग्रन्थम निम्नलिखित पर्शिधिप्ट छगाए गए टन? लत्वाधसुधीका अकारादनकर्म, = तल्वाशगु यब्दोकी सूची, २. नन्वाधवत्तिक उद्घत काक्योंकी सुनी, ¢ नल्वा्धवनिगत ग्रन्थ और ग्रन्थकार, ५ तल्वाधवृनिकं व्रि यद्ध, दु ग्रन्थमंकेन विवरण | प्रस्तावनाम तत्व, तल्वाधिगमक्र उपाय आर मम्यग्दर्यन यीपकोमि जन नत्वत्र मद जनदृष्टिन देखनेका प्रयत्न किया हे । आया है इससे सांस्क्तिक पदार्थकि निरूपणके लिए नवीनमार्गं मिट सकरेगा। 'तत्वाधिगसकें उपाय प्रकरणमें स्याद्राद और सप्तमंगीके संबंध श्री राही, मर राधाक़ृण्णन, बलदेवजी उपाध्याय आदि वर्तमान दर्थनठेखकों की श््रान्त धारणाोकी आठोचना भी की गई है ।




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