छोटे कदम : लम्बी रहें | Chhote Kadam Lambi Rahen
श्रेणी : साहित्य / Literature
लेखक :
Book Language
हिंदी | Hindi
पुस्तक का साइज :
1 MB
कुल पष्ठ :
84
श्रेणी :
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लेखक के बारे में अधिक जानकारी :
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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश
(Click to expand)बोला- “इन्हे ज्यादा परेशान न करो | इनकी तबीयत ठीक नहीं है।
अब आप मेहरवानी करके अपने घर को जाओ 1“
बडे भैया को अव बहुत अफसोस हो रहा था कि यदि वह कहीं से
टेप रिकार्डर ले जा सकते तो ज्यादा बेहतर रहता !
“हूँ।” पारस सोच में पड गया।
मंगतराम ने कहा- “पारस तुम थोड़ी और प्रतीक्षा करो | बडे भैया
ने और अधिक सहयोग करने का वचन दिया है। वैसे चाहो तो हम
अभी पुलिस मे रिपोर्ट कर सकते हैं | पर .......” मंगतराम सोचने लगा |
“जहाँ इतनी प्रतीक्षा हुई वहाँ थोडी और सही |” पारस ने कहा-
“हम पुलिस को ऐसा प्रमाण दे पाएं कि यह लोग बिल्कूल न छूट पाएं |
“ठीक है .......” मंगत ने इतना ही कहा था कि तभी उन्होने देखा-
पीछे की तरफ से बहुत से लोग चले आ रहे हैं। निकट के वस अड़े
पर एक बस रुकी। सहसा मगतराम और पारस के कानों में भारी
आवाज टकराई- “अवे छोकये । तुम लोग इस वक्त रात को यहाँ
क्यो घूम रहे हो 7“
पारस ओर मगतराम ने घूम कर देखा | यह वही मोटा ढाबे वाला
था] दोनो ने उसे संशय से देखा । उत्तर नहीं दिया।
ढाबे वाले ने धमकाते हुए कहा- “बोलते क्यों नहीं ।”
“आप अपनी राह पकडे। हम घूम रहे हैं ।” मंगतराम ने कहा।
ढावे वाला वोला- “घूम रहे हो या आवारागर्दी कर रहे हो । मैं तुम
दोनो पहचानता हूँ | तुर्म्हीं दोनों तो थे जो एक रोज मुझसे लडने
आए थे।“
पारस ने मंगतराम को कोहनी मारी ओर उसे आगे ले गया।
“फिर इस तरह से घूमते देखा तो पुलिस से पकडवा दूगा |”
इतना कहते हुए ढाबे वाला एक रिक्शा पर जा बैठा |
पारस ने कहा- “देखा मगत भाई । इसे कहते हैँ चोर की दाढ़ी
मे तिनका। हम फालतू में क्यौ भडकं |“
“हों पारस । हमे अभी थोडा धैर्य तो रखना ही होगा |“ मगतराम
ने उत्तर दिया।
कुछ देर ओर इसी प्रकार की बातचीत के बाद दोनो मित्र जुदा हो गए।
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छोटे कदम लम्बी रहे;
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