पूजन पाठ | Pujan Path

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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७ अर्थ-सौभाग्यसम्पत्तिं को प्रदान करने वाले इस श्री जिनेन्द्र मगलाष्टक कोजो सुधी तीथंकरो के पचकल्याणक के महोत्सवो के अवसर पर तथा प्रभातकाल मे भावपूर्वक सुनते और पढ़ते हैं, बे सज्जन धर्म, अर्थ और काम से समन्वित लक्ष्मी के आश्रय बनते हैं और कालान्तर मे अविनश्वर मुक्तिलक्ष्मी को भी प्राप्त करते हैं । 1९1। मंगलाष्टक-स्तोत्रे (भाषा) संधसहित श्रीकदकंदे गुरु, वंदनहेत गये गिरनार । वाद परयो तहं खशयम्रतिसों, साक्षी वदी अविकाकार ।। 'सन्य पथ निरग्रथ दिगम्बर” कही सरी तहे प्रगट पुकार ! सो गृरू देव वसौ उर मेरे, विघनहरण मगल करतार ।। १।। स्वामी समंलभद्र म॒निवरसों, शिवकोदी हठ कियो अपार । वदन करो शभपिडीको, तब गुरु रच्यो स्वयंभ्‌ सार ।। वदन करत पिडिका फाटी, प्रगट भये जिनचद्र उदार। सो गुरु देव वसो उर मेरे, विधनहरण मंगलं करतार ।। २।। श्रीअकलंकेव मुनिवरसों, वाद रच्यो जह चौ ड विचार । तारादेवी घट मे थाषी, पटके ओट करत उच्चार ।। जीत्यो स्याद्वादबल म॒निवर, बौद्धबोघ तारा-मद टार । सो गुरु देव वसौ उर मेरे, विधनहरण मंगल करतार ३।। श्रीमत विद्यानेदि जवे, श्रीदेवागमथूति सुनी सुधार । अथहित पहंच्यो जिनमदिर, मिल्यो अर्थ तहे सुखदातार।। तब त्रत परम दिगम्बर को धर, परमत को विनं परिहार। मो ग्रु देव वसौ उर मेरे, विधनहरण मंगल करतार ।। ४।। श्रीमत मानतंग मनिवर पर, भष कोच जब कियो संवार । बंद कियो तालो मे तदी, भक्तामर गरु रच्यौ उदर ।। चक्रेश्वरी प्रगट तव हो के, बंधन कोट कियो जयकार। सो ग्रु देव वसौ उर मेरे, विघनहरण मंगल करतार ५।।




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