बया का घोसला | Baya Ka Gonsla

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Baya Ka Gonsla by श्री पहाड़ी - Sri Pahadi

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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परत ड़ ` १५ चाहती दै } सामप्राज्यवादी गुट तो उनको बरव श्रपनी ज्रोर खींच लेना चाहता है । श्राज विज्ञान के युग का यह युद्ध श्रासान नदीदै, फारसिस्तों को छापने सैनिक बल पर पूण विश्वास है । उनकी भावना है कि राष्ट्रीय कट्याण सैनिक-संस्कृति पर निभंर है 1” “श्रापने तो हमे प्रोफेससें वाला लेकचर देना शुरू कर दिया है । हम तो ठहरी साधारण बुद्धि की । भला श्राप लोगों की तरह विद्वान कैसे हो सकती हैं | न राजनैतिक दाँव-पेँच जानती हैं और न वर्ग युद्ध ! मन अच्छी साड़ियाँ प्रहनने के लिए ललचाता है । नए फैशन श्रपनाना चाहती हैं । हमारा काम खादी के चौड्धे पाजामे तथा कुरते से नदीं चल सकताण्टै | | प्रेमलता यह सुनाकर श्रव सरल से बोली, (तुमे क्या कहना है सरल १ तू तो बिलकुल गूंगी बन जाती है | यदद भली बात थोड़ि ही है |”? सरल यह सव सुनकर भी चुपरदही । प्रेमलता ने चाय की केतली उठाई । केशव के नानना करने पर भी उसके प्याले में चाय बनादी । केशव चीनी मिलाता रहा । श्रव तौ उपने प्याला मंसे लगा लिया । सरल अपने मन मंप्रेमलता कौ यदे शक्ति देखकर मुरा गई । क्या वह प्रम की भति बातूनी बन्‌ कर उनको नही सग खकती है | घट्‌ श्रभी उनके श्र पनल्व की सीमा के बाहर है | वे उसे श्रपना स्वीकार नहीं करते हैं । श्रन्यथा उसकी भावना की परवा श्रवश्य करते । प्रेमलता पति की दासी नहीं हैं। युग-युग द्वारा नारी को जो बेड़ियाँ पहनाई गई हैं, वे टूट गईं हैं । प्रेम ने स्वयं तोड़ी । किसी का मेह नहीं ताका है | प्रेम नेतिकता के किसी तोल पर विश्वास नहीं करती है । क्यों दूसरे वह सब उस पर लागू करें । बह प्रेम को काटे से तोलकर कि पति दी खरा है परिवार के स्थापना की इस कसौटी को सही नहीं सानती है। ने बह पति पर समस्त जीवन को निछावर कर देखे वाली दलील स्वीकार करती है । उसका जीवन के प्रति श्रपना एक दृष्टिकोण है । जिसे वह स्वयं प्रतिनिधि रूप में व्यक्त करती है | पिछली एक संध्या को खाना खाते समय श्रविनाश से कहा था प्रेम- लता नै, “मन कर्ता है कि तुमको छोड़कर चली जाऊ, उस प्रोफेषर के साथ)




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