जैन बाल पोथी | Jain Bal Pothi

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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सत्य कर री थी, इतनेमें अचानक चेत्य करते-करते ही उस देवीदी आयु समाप्त दो गई--उसकी खत्यु हो गई । देहकी पेसी क्षणरसंगुरता देखते दी भगवानका मय संसारसे विरक्त हुआ, और दीश्ा केकर वे सुनि ष्ठो गये। भगवानको रीश्षाके समय भी इन्द्रने बड़ा उत्सव किया । अभी तक असंख्य वर्षते भरते कोई सुनि न थे; संगवान ऋषभसदेव ही सबसे पहले मुनि हुए । सुनि होद्र अगवानने बहुत आन्मध्यान किया; रह मास संक तो वे ध्यानमें द्धी स्थिर खड़े रदे; इसके बाद भो सात सास तक ऋषभ-समुनिराज्ने उपवास डी किये, क्योंच्छि सुनिको किस दिचिखसे आद्ार दिया जाता है थह किसीको मूस न था । इखणप्रकरर पक वपेसे उयादए कारू भोज॒नके चिना द्धी वीत चुका परन्तु भगवानको कोई कष्ट न था, वे तो आत्मध्कान करदे थे और आनन्दके उञुभवद्धे मण्न रटे थे । इसीको वर्षीतप कहा जाता ई) अन्तमं वेश्ाख छद तीके दिन ऋष भरमुनि- राज्ञ इस्तिनाषुर पघारे । भगव्नको देखते दी चद क्ति राजकुमार श्रेयांसको बढ़ा आरी आनन्द हुआ और पूर्वमंवका ज्ञान हो गया; उन्हें सात्यूमे हुआ कि इन्हीं असगवानके साथ आरव भवे चैने मुजियोक्तो आदारदान दिया था! वस, यद याद आते दही बड़ों अक्तिके साथ उन्होंने मुनि- शजकों आह्ानन किया और मन-वथन-कायाकी , - शद्िपृचैक नचधा-भक्तिके साथ गन्नेके रसस ( श्चश्सस ) भगवानके पारणा कराया 1 मुनि छोनेके दाद भगवानने यह पदर दी दार भोजम लिया, अतः यड देखकर सभ्री लोग वहत आनन्दित हण, देवोन भी आकाशे दाजे बजाकर बढ़ा उत्सव किया । तभीसे बच दिन + सक्चय तीज ' ॥ पवेके पदं माजतक चल स्टार) ट = ) ह । | पथ (4 {१५1 व ८५८५६




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