ब्राह्मण और पृथ्वी | Barahman Aur Prithvi
श्रेणी : इतिहास / History
लेखक :
Book Language
हिंदी | Hindi
पुस्तक का साइज :
4 MB
कुल पष्ठ :
124
श्रेणी :
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लेखक के बारे में अधिक जानकारी :
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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश
(Click to expand)ब्रह्मागड ओर पृथ्वी
१
व्रह्याण्डका विस्तारं
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प्रायः देखा गया है किं साधारण दीख पड्नेवाली वस्तुओ पीठे बडा रदस्य
चिपा रहता है ! एक समय था जव कि मनुष्यके पास् दरदशंक आदि कोई भो
यंत्र न थे । उन दिनों दृष्टिगत दोनेवाले समस्त पदाथौमे प्रथ्वी दी सबसे बडी
सममरी जाती थी ! सूर्य और चन्द्रमा जिस आकारमें दिखाई पढ़ते हैं उसी आकार
के समझे जाते थे । उनके लिए यह सोचना स्वाभाविक ही था कि प्रथ्वी अचल
है, सूय ओर चन्द्रमा इसके चास ओर धूमा करते है क्योकि यह एक साधारण
बात थी । वे इसे इन्द्रियोसे निरय अनुभव किया करते थे । आज भी सहसों
पसे | भोले व्यक्ति पढ़े हैं जो नवीन ज्योतिष द्वारा वर्णित ब्रह्माण्ड-व्यवस्थाको.
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