Book Image : बहते आंसू  - Bahate Aansu

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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वहूते आँसू / १७ और चटाई पर पड़कर हाफने लगी । उसके सिर से चक्कर और आंखों में अंधेरा छा रहा था । - दिल की घड़कन बढ़ गई थी और बहू हाफ रही थी । वह सोचने लगी जि भगवान यह क्या सुना? क्या दुनिया ऐसी है ? हाय यह चमक और ठाठ इस तरह मिलते हैं? उसे अब अपनी माता का स्मरण हो आया-- और बह फूट-फूटकर रोने लगी । उसके रोम-रोम में भय और चिन्ता भर रही थी । बह विपत्ति की मारी बालिका इस अथाह समुद्र में डूब-उतरा रही थी कि किसी ने द्वार खटखटाया । खोलकर देखा तो किराये के लिए मकान मालकिन खड़ी हैं। जैसे हिरनी वाघ को देखकर सहम जाती है उसी तरह सहमकर अनाथा ने बृद्धा को देखा बुद्ध ने ककंश स्वर में हाथ आगे बढ़ाकर कहा-- ला दे किराया दे आज ही का तेरा वायदा है। बालिका ने बिल्कुल दवे स्वर से कहा-- चाची आज मै जरूर दे दूंगी अभी तो दिन ही निकला है। मै काम पूरा करके दे आई हूँ पर अभी मजदूरी मिली नही है। डाइन की तरह एकदम सिर पर गरजकर बुढ़िया वोली-- मजदूरी का कया मैंने ठेका लिया है ? दो महीने हो गए किराया नही दिया ? ला अभी दें नहीं तो चोटी पकड़कर बाहर निकालती हूँ। लड़की प्रार्थना भी न कर सकी । वह अधमरी-सी होकर बुढिया की ओर त़ाकने लगी 1 बुढिया ने कहा-- इस तरह मरे वंल-से दीदे क्या निकालती है ? किराया दे 1 बालिका ने कुछ बोलना चाहा पर उसकी जीभ सालू से चिपक गई । उसने धरती पर गिरकर बुढिया के पैर पकड़ लिए। अन्त में उसने टूट्ते स्वर से कहा-- चाथी दो दिन से अन्त का दाना मुंह मे नहीं गया पर पहले किराया दूँगी पीछे जल पीऊँगी 1 तुम शाम तक दया करो । बुढिया का हृदय पिघला पर क्षण-भर बाद उसने कहा-- शाम को नही अभी दे। कही से दे । उठ । मैं अभी लूँगी । अभी तेरा गुदड़-बोरिया




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