सौ अजान और एक सुजान | Sou Ajan Aur Ek Sujan
लेखक :
Book Language
हिंदी | Hindi
पुस्तक का साइज :
5 MB
कुल पष्ठ :
138
श्रेणी :
हमें इस पुस्तक की श्रेणी ज्ञात नहीं है |आप कमेन्ट में श्रेणी सुझा सकते हैं |
यदि इस पुस्तक की जानकारी में कोई त्रुटि है या फिर आपको इस पुस्तक से सम्बंधित कोई भी सुझाव अथवा शिकायत है तो उसे यहाँ दर्ज कर सकते हैं
लेखक के बारे में अधिक जानकारी :
No Information available about श्रीदुलारेलाल भार्गव - Shridularelal Bhargav
पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश
(Click to expand)दूसरा प्रस्ताव १९
चिकनाते हुए फैशन और नज़ाकत के पीछे जनखा बन
केवल अपने ाराम और भोग-विलास की फिक्र के सिवा
ओर कुछ न करना इसे बिलकुल नापसंद था । न हरदम
खाली सुभिरनी फेरना ही इसे भला लगता था, न यह आलें
पहर अथं-पिशाचं वन केवल रुपया-ही-रपया अपने जीवन का
सारांश मान बैठा था । वरन् समय से धमे, अथे, काम, तीनो
को पारी-पारी सेवता था । व्यासदेव के इस उपदेश कों अपने
लिये इसने शिक्तागुरु मान रक्खा था- ' ।
घर्माथकामाः समतेव सेव्याः
यस्त्वेकसेच्यः स नरो जघन्यः ।%
बुद्धिमान् ओर सभाचतुर एसा था कि जरा-से इशारे मे वात
के ममे को पकड़ लेता था । केवल एक दी मेँ नितांत आसक्ति
न रख धमे, अथे, काम, तीनो मेँ एक-सी निपुणता रखने से
कभी किसी चालाक क जुल में यह नदीं राता था । संसार
के सब काम करता' था, पर जिंतेद्रिय ऐसा था कि कच्ची
तबियतवालों की भाँति लिप्त किसी में न होता था--
शरत्वा दृष्ट्वा च स्पष्ट्वा च शुक्त.वा घ्रात्वा च यो नरः ;
यो न हप्यति ग्लायति वास विक्तेयो नितेन्दियः
> ध्म, प्रथं श्रौर काम; इनका समान रूप से सेवन करना चाहिए
जो मनुष्य एक ही का सेवन करता है, वह निंद्य हे ।
1 जो मनुष्य खुनकर, देखकर, छूकर, खाकर और सूघकर न. प्रसन्न
होता है न अप्रसन, उसे जितेद्रिय जानना चाहिए ।
User Reviews
No Reviews | Add Yours...