प्रवचनसार प्रवचन सप्तम भाग | Pravachansaar Pravachan (Bhaag- 4)

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Pravachansaar Pravachan (Bhaag- 4) by खेमचन्द जैन - Khemchand Jain

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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(७) ` कराथा,. उन प्रवचनोंका श्र उन्हींको लेकर गुस्फित किये गये इस ग्रन्थरत्मका श्राघ्यालिक वाडमयमे निःसन्देह बहुत वड़ा महत्व है श्रौर जव तक यह्‌ ग्रन्थरत्न . ` विद्यमान, रहेगा । इसका यह महत्व वरावर श्रक्षुण्ण रहेगा । श्रद्धय क्षुल्लक वर्णी जी महाराजने श्राचार्य कुन्दकुन्द श्रौर आचार्य अ्रमृतचन्द्र जी की श्रघ्यात्मदेशनाकों :. श्रात्मसाद्‌ : करके जिस सरलता: श्रौरःः सादगीके. साय जैन: श्रघ्यात्म जसे गंर्भर एवं दाशं निक .विषयोंको इन प्रवचनोंमें उड़ेला है उनका यह पुण्य ' कार्य श्रत्यन्त महत्त्वपूर्ण और भ्रनुपस है... ४ ४ ५८. ... प्रशा है, श्रध्यात्म. प्रेमी समाज. इस ग्रन्यका रुचिपूर्वक स्वाध्याय करेगा श्रौर श्र पनी दृष्टिंको “` विशुद्ध रौर सम्यक -वनांकरं पूरणः आ्आात्मस्वातेन््यके °` पथका अनुगामी बनेगा ।




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