बलिदान | Balidan

55/10 Ratings. 1 Review(s) अपना Review जोड़ें |
Balidan by बाबु रामचन्द्र वर्म्मा - Babu Ramchandra Varmma

लेखक के बारे में अधिक जानकारी :

No Information available about रामचन्द्र वर्मा - Ramchandra Verma

Add Infomation AboutRamchandra Verma

पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

(Click to expand)
ह्य | पहला अक । १९ पर जा बैठना पडेगा, तो क्या इसी डरसे आज हम लड़कीको पानीमें फेंक दे ? तुमसे जो कुछ हों सके सो करो । कर०--ओौर तव फिर बाकी दोनों' लड़कियोंका क्या होगा मसरी लडकीका न्याह भी इसीके साथ हो जाय तो अच्छी बात है । दोनोंमें दो ही बरसकी तो छोटाई बढ़ाई है। हाँ, यह है कि उसकी उठान ऐसी नहीं है, इस लिये जो चाहो सो कह लो । ^ सर०--उन दोनों लड़कियोंक भाग्यमें जो कुछ बदा होगा सो होगा । हिरणका ब्याह अभी दो बरस तक न भी हो तो भी कोई हज नहीं है । कलके लिये घरमें अन्न न हो तो क्या इस लिये आजका परोसा हुआ भोजन भी मिट्टी.कर दिया जाय ? बाबूजी कहा करते थे कि यदि अच्छे पात्रकों कन्यादान की जाय तो एक ही लद्कीसे सात लड्कोका काम निकलता है । और फिर यह भी तो नहीं है कि ऐसे ही दिन सदा बने रहेंगे । इनसे अच्छे दिन भी आ सकते हैं और बुरे दिन भी आ सकते हैं । तुम तो मर्द हो, इस तरह जी छोटा क्यों 'करते हो 'करु०--में भी पहले इसी तरहकी बातें सोचा करता था; में भी लोर्गोको इसी तरहके उपदेश दिया करता था । और इससे अच्छे दिन कया पत्थर होंगे । इन दस बरसोंमें अभी तक डेढ्सो रुपए महीना भी तनखाह नहीं हुई । तुम नहीं जानतीं, यह संसार बड़ा कठिन है-- इसे बन्घु-बान्धवहीन जंगछ ही समझो । यदि पहलेसे ही समझ-बुझ कर कोई काम न किया जायगा तो पीछेसे अवश्य पछताना पढ़ेगा । सर०--अजी यह कौन जानता है कि कठको क्या होंगा ? सुख-दुःख तो इस संसारमें ठगा ही रहता है । चाहे अच्छा हो चाहे बुरा, धम्मके अनुसार सब काम करनी चाहिए । अपनी सन्ता-- नके शत्रु न बनो । यदि घर भी चला जाय तो तुम कुछ सोच मत




User Reviews

No Reviews | Add Yours...

Only Logged in Users Can Post Reviews, Login Now