माटीमटाल भाग १ | Maati Matal Bhag 1
श्रेणी : साहित्य / Literature
लेखक :
Book Language
हिंदी | Hindi
पुस्तक का साइज :
6 MB
कुल पष्ठ :
318
श्रेणी :
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लेखकों के बारे में अधिक जानकारी :
गोपीनाथ महांती - Gopinath Mahanti
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शंकर लाल - Shankar Lal
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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश
(Click to expand)एक समन्वय है और उसके साय ही एक सन्देश भी, जो मन को छू-छू रहा है और
जिससे लगता है कि मानों यह आकास अपना हो, यह माटी भी उसकी अपनी हो ।
उड़ते हुए ये नहीं चठे जा रहे है जहाँ पहले भी उडकर गये हूं 1
हवाई जहाज़ पास आ रहा हूँ : जिसकी मछली के आकार जंसी बनावट है और
बाट भूक नारियल के भरो कौ जसी राव-राव करती आवाज । पहले दूर था, अब पास
आ गया । पेड़ों की ओठ भी पार हो गयी । वह सामने ही दिख रहा हैं नदी किनारे का
प्राचीन बरगद और पास हो बकुलेदवर का शिव मन्दिर । कोई साढ़े सात सी वर्ष पूर्व
कादयो फा मन्दिर टूट पया त्तो लगभग पौव सै वर्प हृषु यह पत्थर का मन्दिर गा
गया । संव याद भा रहा हैं.
वह् विस्मित करता प्रकाश ! हवाई जहांज का नहीं, मन्दिर का है। मन की
आँखों के आगे आप से आप फिर जाती है. प्रवेशद्वार के ऊपर काले मरमर पर अंकित
शिलालिपि जो मुखशाछा पार कर जाने पर हवाई जहाज़ से भी दिंसती हूं, वहीं
शिराछिपिं जिसके अक्षर कुछ विचित्र प्रकार के है । इंघर से जाते हुए वार-वार पढने से
मै पवितां कण्ठस्य हौ गयी ह :
“नवकोटि कर्णोटौललवर्णेशवर वीराधिवी रवर पुरुपौत्तमदेव महाराज के विजय
शुभ समस्त १५ अंक....रविवार समय १ दण्ड अस्लेपा मक्षत....जिसे अनंग-भी मदेव
राजा के भाई गोपाल छोटराय ने इंटों से निमित कराया था बह अब टूट गया । इसलिए
परणिखण्ड गाँव के खण्डाइत राय पीताम्वर महापात्र ने पत्थर से निर्मित कया । इस
देवता के सेवक बराही नायक हैं । श्रीकर महाराणा रवर महाशणा सारथि महाराणा
सोच महाराणा गौर भी कितने ही भाम इस मन्दिर के वनानेवाले कारीगरो के
थे जी थव दिढालिपि में से विलुप्त हो गये है ।
ये शाढ़े चार सो वर्ष तो कल जैसे लग रहे है । शिलालिपि की भाषा भी ऐसी
लगदी है मानो किसी ने अभी लिखी हो । यहाँ के लोगों की बोली तक में इस
वीच पेता कोई परिवर्तन नहीं आया जो स्पष्ठ गोचर हो । मन्दिर है जो अपनी पाद्व
भूमि के साथ एक आदमी जितना नोचे को धसक गया है। कोई मूर्ति साबित वनी है
तो कोई टूटी हुई है, कोई बिलकुल ही घिस गयी है 1 फिर भी मन्दिर थाज तक अपने
समूचे भव्य रूप में बैँसे का बैँसा खड़ा है: लगता है जैसे उत्कष्ट कला-शिल्पयुक्त तीन
विमाने एक कै छपर एकत स्थित हो--मौर इसी प्रकार उनके ऊपर से गुजर गया हो
बालक गौर छाया भरे साढ़े चार सो वर्पों के इतिहास का यमूचा क्रमिक प्रवाह ।
„ मन्दिर कै उपरो गाग से देखनेपर नीचे का सारा माग दिन उतरते कौ शुनहरी
धूप में नहांया हुआ चमकता दिखाई देता है। लगता है जैसे इस मन्दिर का भी एक
अपना व्यक्तित्व हो । चारों ओर अनछिदी अनुभूतियों को भूठी-निसरी कहानियाँ
अंकित है। टिमटिमाते ता तचे बेंबेरे में अकेले खडे होने पर जब निसावृत शिखमिलाते
जुगमुओं के जलने-बुझने के साथ-साय सियारों को उल्लास मरी चीत्कारें सुनाई देती
मारीमयक्
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