मारवाड़ रा परगना री विगत भाग 2 | Marvad Ra Pargana Ri Vigat Bhag 2

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Marvad Ra Pargana Ri Vigat Bhag 2 by फतहसिंह - Fathasingh

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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वात परगने फछोधी री थ् भाटी घणा मारीया । नरा रा पग छूटा कहै छे ।” रावजी रे साथ वांसौ कीयौ ।* घणा मारतां मारतां पोहोकरण कंवर हरराज रा डेरा था गया । भाटी डेरा मेली नीसर गया, इण डेरा लुटीया । राः प्रथीराज रे हाथ रावत भींव रहीयो । बीजौ ही घणौ विसेष हुभौ । पाछा कुसलें षेसे रावजी कनै साथ आयो । तर सिके राती बरछी कीयां* रावजी री हजूर भ्राया । प्रीथीराज माहली चाठ* था बरछी लुद्दीं ऊजली थकां श्रायौ । तरें रावजी जेसैजी नुं कहीयौ-जैता वाठीँ पूत* झ्राज ही उजछी बरछो कीयां श्रायौ छे। तर जेसेजी कहीयों छे-थे घणा रजपूतां मांहे समभकौ । प्रथोराज री मांहली चाठ दिषाठी 7, वात मांड कही ।” वेढ इण रे भुजे* जीती छे । तठा था रावजी प्रथी- राज रौ घणौ भलौ हुवो । इण वेढ पछे नरा रौ बठ छूटौ। डंगरसी जी रावजी नूं कहाड़ीयौ-हिमें मोनुं छोडी तो हूं कोट फलोधी रौ रोवजी नूं माहरा चाकरां कन्है दिराऊं। तर रावजी बात श्रा राषी, कहो-माहारो कोट श्रावसी तरे म्हे तोनुं छोडसां । तरे डूंगरसी कोठ र मोहडे जाई जगहथ देपावत नुं कहीयौ-साबास सें पांच मास गढ वीग्रहीयौ ।*” हिमें हूं दोहौरौ हूं * तूं कूंची रावजी नुं सौंप जु मोनूं छोडे । तर गढ़ रावजी लीयाँ ने डूंगरसीजी नुं छोड दीयौ । तठा पछ्च बरस १४ तांई रावजी रे फोधघी रही । ६. पछें संगत १६१६ राव मालदे काठ कीयौ तरे भाली सरूपदे रा बेटा चंद्रसेन उदेसिघ था, सु सरूपदे बछती”* चंद्रसेण नं जोधपुर दोयौ, टीकायत थी । नै उद्देसिंघ नूं फठोधी दी । दस ७. उदेसिंघ फठोधी आरायौ । पछे राव चंदरसेन नै रजपूतां झ्रसुष हुवी ।”* तरे रजपूत उदेिंघ नुं भषायौ ।”” तरे घांघाणी मारी ॥ एटा. 1- कहते हैं कि भाग गया ।... 2. पीछा किया ।.. 3. खुन से लाल बरछी किये हुए ।. 4 कुर्ते (भंगरखी) के छीर के श्रन्दर का भाग ।.. 5. पोंछ कर साफ की ॥ 6. जेते का पुत्र । 7. दिखाई ।. 8. विस्तार से सारी बात कट्टी ।. 0. इसके बाहु- बल से । 20, द्वार पर जाकर । युद्ध करके गढ़ रखा ।. 12. तकलीफ में हुं । ३3. सती होते समय 1 24. हुई । 15. सिखाया ।.. ।




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