मारवाड़ रा परगना री विगत भाग 2 | Marvad Ra Pargana Ri Vigat Bhag 2
लेखक :
Book Language
हिंदी | Hindi
पुस्तक का साइज :
15.13 MB
कुल पष्ठ :
506
श्रेणी :
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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश
(Click to expand)वात परगने फछोधी री थ्
भाटी घणा मारीया । नरा रा पग छूटा कहै छे ।” रावजी रे साथ
वांसौ कीयौ ।* घणा मारतां मारतां पोहोकरण कंवर हरराज रा डेरा
था गया । भाटी डेरा मेली नीसर गया, इण डेरा लुटीया । राः
प्रथीराज रे हाथ रावत भींव रहीयो । बीजौ ही घणौ विसेष हुभौ ।
पाछा कुसलें षेसे रावजी कनै साथ आयो । तर सिके राती बरछी
कीयां* रावजी री हजूर भ्राया । प्रीथीराज माहली चाठ* था बरछी
लुद्दीं ऊजली थकां श्रायौ । तरें रावजी जेसैजी नुं कहीयौ-जैता वाठीँ
पूत* झ्राज ही उजछी बरछो कीयां श्रायौ छे। तर जेसेजी कहीयों
छे-थे घणा रजपूतां मांहे समभकौ । प्रथोराज री मांहली चाठ दिषाठी 7,
वात मांड कही ।” वेढ इण रे भुजे* जीती छे । तठा था रावजी प्रथी-
राज रौ घणौ भलौ हुवो । इण वेढ पछे नरा रौ बठ छूटौ। डंगरसी
जी रावजी नूं कहाड़ीयौ-हिमें मोनुं छोडी तो हूं कोट फलोधी रौ
रोवजी नूं माहरा चाकरां कन्है दिराऊं। तर रावजी बात श्रा राषी,
कहो-माहारो कोट श्रावसी तरे म्हे तोनुं छोडसां । तरे डूंगरसी कोठ
र मोहडे जाई जगहथ देपावत नुं कहीयौ-साबास सें पांच मास गढ
वीग्रहीयौ ।*” हिमें हूं दोहौरौ हूं * तूं कूंची रावजी नुं सौंप जु मोनूं
छोडे । तर गढ़ रावजी लीयाँ ने डूंगरसीजी नुं छोड दीयौ । तठा पछ्च
बरस १४ तांई रावजी रे फोधघी रही ।
६. पछें संगत १६१६ राव मालदे काठ कीयौ तरे भाली सरूपदे रा
बेटा चंद्रसेन उदेसिघ था, सु सरूपदे बछती”* चंद्रसेण नं जोधपुर
दोयौ, टीकायत थी । नै उद्देसिंघ नूं फठोधी दी ।
दस
७. उदेसिंघ फठोधी आरायौ । पछे राव चंदरसेन नै रजपूतां झ्रसुष
हुवी ।”* तरे रजपूत उदेिंघ नुं भषायौ ।”” तरे घांघाणी मारी ॥
एटा.
1- कहते हैं कि भाग गया ।... 2. पीछा किया ।.. 3. खुन से लाल बरछी किये
हुए ।. 4 कुर्ते (भंगरखी) के छीर के श्रन्दर का भाग ।.. 5. पोंछ कर साफ की ॥
6. जेते का पुत्र । 7. दिखाई ।. 8. विस्तार से सारी बात कट्टी ।. 0. इसके बाहु-
बल से । 20, द्वार पर जाकर । युद्ध करके गढ़ रखा ।. 12. तकलीफ में हुं ।
३3. सती होते समय 1 24. हुई । 15. सिखाया ।.. ।
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