विचित्र चरित्र खंड - १ | Vichitra Charitra Khand - 1

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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विचिन्रचरित्र । १घू द्ारफालकोंसे प्रचंडाकी आज्ञाकहसनाइं ओर -गरागारमें जाकर सीमविक्रमको जो मायासे निभित पाशसे बैंघादहुआथा च्योर हाथों और पैरोंमें भारी २ निगड़ पड़ेहुएथे पाशकों हाथसे पकड़े हुए प्रचंडाकेपास लेचलीं च्यौर थोड़ेही कालमें उस स्थानपर ब्यापहुंचीं जहां घ्रचंडा ओर राजपुत्री मोहनीचित्र सब सहेलि यों सहित चआनन्दपर्वक बेठीहुई वातालाप कररहीथीं उसससय राजपुत्रीकी दृष्टि अकस्मातू उस दर्शनीय स्वरूपवान्‌ और कामदेवकीसी मर्ति रखनेवाले राजपुत्र भीमविक्रमपर जापड़ी ॥ दढो०. वयकिशोीर सुन्दर परम रत्न परुष छविधास । मानो मानुष तन धरघो रूप राशिको काम ॥ देवयक्ष गन्धव नर किन्नर आदिक माहिं । जाके स्॒ट स्वरूपकी उपम्ध मिलती नाहिं ॥ देखतेही राज पत्रकी घनषाकार भकटीसे एक प्रेमरूपी बाण निकलकर राजपुत्री मोहनीचित्रके हृदयको विदीएं करताहुआ पार होगया दो०. भूतलगे सदिरा पिये सबकाहू सधि होय। प्रेमसुधारस जिनपियो तिनरसधिरहे न कोय ॥ अद्ुत पेड़ों प्रेसको न्याय कहत सब कोय । नयननसों नयना मिलें घाव करेजे होय ॥ घोर वह सच्छित होगई उसीसमय घ्रचंडाने केवड़ा और सालाब आदि सगंधित जल मैंगवाकर उसके ऊपर छिड़का इसीचवसरमें राजपुत्र भीसविक्रम जो निकट पहुंचा तो देखता क्याहे कि एक परमसन्दरीखी .सर्च्छासि चेतन्यहोकर सके टक- टकी लगायेहुए देखरही है परमेइवरने कया क्या अद्तस्वरूप उसका बनायाहे कि त्रिलोकीमें वैसी सन्द्रीखी न थी शोभा और ठविकी वहस्त्री मतिथी उसको देखकर राजपत्र यद्यपि केदमें होने च्और धर्षणापानेसे च्स्वस्थथा परत उस छबीलीके मनो-




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