आत्म दर्शन | Aatm Darshan
लेखक :
Book Language
हिंदी | Hindi
पुस्तक का साइज :
10 MB
कुल पष्ठ :
391
श्रेणी :
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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश
(Click to expand)१४ आत्मद्दन
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भी नहीं है जितना कि प्राणिजगत्के विकाशकी कल्पनाके छिए ।
मानसिक बिकादा आधार रहित कल्पना मात्र है । प्राचीन समयसे
` अव्र तक क्रमश: ज्ञानका विकादा नहींडुआ हैं । प्राचीन कारू कति-
पय बातोंमें अवीचीन कालसे बढ कर था इस विषयमे भी इत
प्रन्थमें बहुत कुछ लिखा गया है। परन्तु मुख्य समस्या यह है
कि मनुष्येमिं यदि ज्ञानका विकाश भी माना जावे तो उस ज्ञान
का ख्लात कया है ? मनुष्य आर पट जगते बीच ज्ञान अथवा
ज्ञानका घारण करने वाली व्यक्त भाषा एक मेदक रेखा (1:५6
0 06ाए 8:80) दे | मनुष्योंमें बह ज्ञान कहांते आया १ पञ्च
अवस्थासे उसका विकाश वैज्ञानिक रीति पर सिद्ध नहीं होसकता ।
उस ज्ञानका स्रोत श्वरीय ज्ञान' दा हो सकता है जो कि
वेदके रूप है। इस विषयमें भी इस ग्रन्थमें बहुत प्रकाश डाटा
गया है ।
यहां हमने जडवाद और आत्मर्बादकी वास्ताबिक स्थिति
और उनके सिद्धान्तेंका संक्षिप्त विवेचन दिया है । इस विषय
पर इस प्रन्थमें विस्तारस विचार किया. गया है । साथ दी इस
ग्न्थकी एक बडी विशेषता यदद है कि उसम आत्म सम्बन्धी
खगभग सारे विचार ओर सिद्धान्त, चि बह नवीन हों या
प्राचीन चाहे इस देशके ( पूर्व ) के हों अथवा विदेश (पश्चिम)
के, चषि वे वैदिक धर्मके हो या अन्य धमकि, एकत्रित किए
गए हैं. जोकि इस विषयकी ज्ञानब्द्धिमे बहुत सहायक होंगे ।
यह स्पष्ट है कि विषय अति गम्भीर है विशेष कर इस कारण
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