विवेक और साधना | Vivek Or Sadhana

55/10 Ratings. 1 Review(s) अपना Review जोड़ें |
Book Image : विवेक और साधना  - Vivek Or Sadhana

लेखकों के बारे में अधिक जानकारी :

किशोरीलाल मशरूवाला - Kishorilal Mashroowala

No Information available about किशोरीलाल मशरूवाला - Kishorilal Mashroowala

Add Infomation AboutKishorilal Mashroowala

केदारनाथ - Kedarnath

No Information available about केदारनाथ - Kedarnath

Add Infomation AboutKedarnath

पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

(Click to expand)
१७ सकते । अगर हम धर्मको गौण वना दे, तो सासारिक दुष्टिसे बहुत प्रगति कर सक्ते हं ! क्या यह सच है? समव भी है? अगर यह कहा जाय किं घर्म अपने अनुयायियोके बडे-वड़े साम्राज्य जीतने और स्थापित करनेमें, करोडपति बननेमे, जैश-आराम ओौर मोग-विलासमे इवे रहने वाघक होता है, तो यह समझमें आ सकता है। परन्तु क्या घर्म मनुष्यके अुचित मर्थ और कामका भी शत्रु हो सकता है? क्या घर्म अपने अनु- यायीको जितना कंगाल बना सकता है कि वह्‌ दाने-दानेको मोहताज हौ जाय ? क्या वह मुसे बैसा गरीब और कायर बना सकता है कि कोओी भी डरा-घमका कर भुसकी मेहनतसे प्राप्त की हुआ और किफायतशारीसे , चचाओ हुआ वस्तु युससे छीन कर के जाय ? क्या ध्म असे जितना मोला ओर मृखं रख सकता है कि वह सहज -ही किसीसे भी धोखा खा जाय ? क्या वहं अपना पालन करनेवाछेको जितना भघश्रद्धालु, मूखं मौर लालची , चना सकता है कि वह किसीकी मामूरी करामातोसे मुलावेमें आ जाय ? अगर जैसा ही परिणाम भाये, तो या तो हमारे जिस खयालमें भ्रम है कि हम धर्मपरायण है या घर्म समझकर हम जिससे चिपटे हमे है वह धर्म नहीं बल्कि कोओी आम ही है। या तो ' धर्मादर्थदच कामङ्च' (घर्मसे ही अयं और काम सिद्ध होता है) यह व्यास-वचन गलत है या हमारा यह अभिमान गलत है कि हम धर्मपरायण लोग है । ` कुछ कोग धम्मं और भीश्वरका अभेद, करके धर्मंके वारेमें जो शका अूपर वताओी गजी है, जुसे भीश्वरके अस्तित्व-विषयक झकाके रूपमें प्रगट करके पूरते ह कि यदि आऔदवर है तो जैसे अन्याय, दुख वगैरा क्यो होते है? ओदवरे यह्‌ सव कंसे देख सकता है ? जिसमे या तो आदवर है ही नहीं या जिसे हम औदवर मान बैठे हैं अुससे वह कोओ दूसरी ही शक्ति है। भिस प्रकार अक मोर धर्मं अथवा गीइवर भौर दूसरी गोर अर्थं- कामके वीचका विरोध बहुतोको परेशान करता रहा है । घर्म, भक्ति, ज्ञान, अध्यात्म-शास्त्र, दर्शन वगैराके श्रयोर्मे जिसका स्पष्टीकरण नही मिरुता । जनमे योगाम्यासो,. सिद्धियो, अगम्य चशब्दो, तत्त्वो, तत्त्वोके गणितो ओौर पचीकरणो चगैराकी वहुतसी वैसी वातं हं, जिनमें पडनेका सिवा




User Reviews

No Reviews | Add Yours...

Only Logged in Users Can Post Reviews, Login Now